देवी जी..
माता रानी की सेवा में
लगी हुई है..
आदेश हुआ कि
आज मुझे यहां
आपसे मुखातिब होना है
लीजिए ये रहे आज की पसंदीदा रचनाएं...
अंतिमसमय
वैसे कल से मैं अपने साथ ध्यान रखने के लिए एक सहयोगी की नियुक्ति कर रहा हूं। यह निर्णय मैं आज के एक्सीडेंट के बाद ले चुका हूं। अब क्योंकि मेरे स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है इसलिए मैं उनके लिए खतरा बनता जा रहा हूं। उन्हें ऐसा ही लगता है।
हो ख़ुशी या ग़म या मातम, जो भी है यहीं अभी है
न कहीं है कोई जन्नत, न कहीं ख़ुदा कोई है
जिसे ढो रहे हैं मुफ़लिस है वो पाप उस जनम का
जो किताब कह रही हो वो किताब-ए-गंदगी है
राम और सीता की तरह
एक उम्र गुजर जाती है
अपने ही ह्रदय को
अपनी ही आत्मा से
मिलने में
एक सार करने में.
एक नारी ऐसी भी
वर्तमान नारी का जीवन, क्यों इतनी व्यथित हुई है.
व्याभिचारी-अपराधी बनकर, क्यों स्वार्थी चित्रित हुई है.
जब-जब भी वह बहकी पथ से, वो पथभ्रष्ट दूषित हुई है.
अब गाय गाँव आएगा क्या ?
बहुत साल हुए हम लोग पटियाला जा रहे थे कि छोटे बेटे प्रद्युम्न जो कि चार साल का था, ने रोना शुरू कर दिया। उसकी मांग और जिद थी कि वह कार की सीट के नीचे घुसेगा और वहीँ सोयेगा भी। मनाने पर भी मान नहीं रहा था। तभी मेरी नज़र माइल -स्टोन पर पड़ी। जिस पर लिखा था, 'गिदड़बाहा 'पांच किलोमीटर !
चाह नहीं ऐसे दर जाने की
जहां सदा होती मनमानी
वे अपना राग अलापते
साथ चलने से कतराते
घर बना रहता सदा ही
और ये रही आज की अंतिम कड़ी
कड़े दिन हैं, मियां ! टोपी लगा लें
फ़रिश्तों की नज़र अच्छी नहीं है
हंसें या रोएं अब इस बात पर हम
ग़ज़ल उम्दा मगर अच्छी नहीं है !
इज़ाजत दें दिग्विजय को
फिर मिल सकते हैं
ईश्वरेच्छा पर निर्भर है
सादर....
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज के लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
शुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक चयन....
आज के लिए तो आनंद की मात्र ज्यादा है पांच से. सुंदर लिंक सयोजन.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.
बहुत सुंदर प्रस्तुति दिग्विजय जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक-सह हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक सयोजन दिग्विजय जी
जवाब देंहटाएंना जाने यह कैसे कैसे अभियान चलाते है
जवाब देंहटाएंफिर इनकी आड़ मैं यह इंसान जलाते है
.
जब देखा फ़ैल रही है भाईचारे मशालें यहाँ
फिर यह नफरतों के चुभते बाण चलाते है
.
लड़ाकर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मैं
फिर भी नस्लों मैं भेड़िये यह इंसान कहलाते है
.
गए नहीं कभी मंदिर मस्जिद की चोखट पर
अपना ही धर्म सबसे से ऊँचा हमको सिखलाते है
.
इतने मैं ना हुआ इनका मकसद पूरा तो
फिर यह दुष्ट गीता और कुरान जलाते है
.
फिर ले जाकर इन मुद्दों को संसद तक "राज"
वहां भी लगता है जैसे हैवान चिल्लाते है
.
.............................................MJ deshwali ( RAAJ )
अच्छे लिंक्स मिले। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
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