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सोमवार, 6 मई 2024

4118 ..ख्वाहिश नहीं, मुझे मशहूर होने की

सादर अभिवादन
आज शायद कुछ है
कोई तो है नाराज
आइए देखे कुछ नई रचनाएं ...




गगन की लालिमा दे रही दुहाई
दिख रही मुझसे
दूर होती मेरी ही परछाई
डूब रहा सूरज ढल रही शाम
क्षतिज का सूरज भी जाने लगा है




चुनावी  विश्लेषण वाले तथाकथित पत्रकार 4 जून को मातम मानते हुए नजर आएंगे फिलहाल प्रेशर कुकर की सीटी वाला काम रहे है वरना कुकर तो फट ही जाएगा..! मन की शांति के लिए विरोधी इन्हें पढ़ते है और इनके यूट्यूब चैनल पर जाकर देखते हैं। यकीन मानिए दो जून की रोटी तक नही पचेगी इन खलिहर खैरातियो से  कर ले बकइती जितना करना आखिर में यही सब करने का तो खैरात मिलता है। बाकी कोई नही टक्कर में चाय वाला फिर से आ रहा है पूर्ण बहुमत में .. चाय वाला चौकीदार बना था पिछले चुनाव में इस साल परिवार बन चुका है सबका और  देश जिसका परिवार बन के खड़ा हो गया हो





वैसे छोले पूड़ी बनी है अगर आप खाना चाहें'। उसने सूचना भी जोड़ दी। तेल मसाले के खाने से बहुत दूर रहती हूँ मैं इसलिए छोले पूड़ी का नाम सुनते ही सिहरन सी हो गयी। फिर सोचा चलो कोई बात नहीं आज ये भी सही। उसे कहा 'ठीक है जो बना है वही ले आओ अलग से क्यों बनाना'।





तीन बंदरों की नयी बात लिखेंगे
गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे
तीन बंदरों को   खुद ही सुधार लेने को
उनकी औकात लिखेंगे उनकी जात लिखेंगे




आजकल यहाँ
तपता है मौसम,
उड़ती रहती है धूल,
दोपहर बेजान-सी ।
पंछी खोले चोंच
ढूंढते हैं पानी ।




ख्वाहिश नहीं, मुझे
मशहूर होने की,"
आप मुझे "पहचानते" हो,
बस इतना ही "काफी" है।
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,
जिसकी जितनी "जरूरत" थी
उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!


आज बस
कल सखी से मिलिएगा
सादर वंदन

8 टिप्‍पणियां:

  1. येस गॉड का नाराज होना अच्छी बात नहीं है वो भी 2024 में :) l आभार यशोदा जी l

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    उत्तर
    1. साहिब ! .. गुस्ताख़ी माफ़ ...
      गाँधी और नेहरू ख़ुद ही लिख गए हैं, इतिहास के पन्नों पर ढेर सारे अपने-अपने साफ़-सुथरे कारनामें;
      समय और सोच हो तो कभी पटेल, बोस और सिंह को पड़ी लात व ज़बरन मात की भी बात लिखेंगे .. बस यूँ ही ...
      तीनों बन्दरों के आँख, मुँह और बन्द कानों के कारण मचे उत्पात से, अब चौथे बन्दर की तलाश करेंगे,
      अब इस पुरुष प्रधान समाज वाली सोच से इतर बन्दर के साथ एक बन्दरिया की भी मिलकर हम तलाश करेंगे .. बस यूँ ही ...
      (भला कब तक हम तीनों बन्दरों में ही उलझे रहेंगे 🤔)

      हटाएं
    2. पटेल, बोस और सिंह के लिए आप हैं ना हजूर और बड़े हजूर भी :)

      हटाएं
  2. यशोदा सखी, इस अंक में लू के थपेड़े भी, मतभेद भी, पहाड़ों की ठंडक भी और अमलतास के फूल भी ! बात बनी ही नहीं.....लाजवाब हो गई ! बहुत बहुत धन्यवाद. नमस्ते.

    जवाब देंहटाएं
  3. और मुंशी जी, सब देख रहे थे. जाने क्या-क्या लिख गए थे. पढ़ते-पढ़ते पता चलेगी बात !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर रचनाओं का सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया प्रस्तुति । आपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए🌻

    जवाब देंहटाएं

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