आखिर कहाँ से आया 'लिट्टी-चोखा' और कैसे बन गया बिहार की पहचान....
लिट्टी चोखा का इतिहास रामायण में वर्णित है। ये संतो का भोजन होता था। जब राम और लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हेतु गए थे तब भी उन्हें सुबह में सातु और रात्रि में लिट्टी चोखा मिलता था।
रही बात लिट्टी चोखा की तो ये विशुद्ध रूप से भोजपुरी भाषी भोजन है और भृगु क्षेत्र (बलिया) से लेकर व्याग्रहसर (बक्सर) तक प्रचलित थी। आज भी बक्सर में पंचकोशी मेला लगता है जिसमे 05 दिन लिट्टी ही बनती है। ये भगवान राम का अनुसरण है जो यज्ञ की रक्षा के समय किया गया था।
कुछ लोगों की लापरवाही या कहिए आरामपरस्ती ने देशों के नक्शे बदल कर रख दिए ! ऐसे लोगों के कारण सियालकोट का हिन्दू बहुल इलाका भारत में शामिल होते-होते रह गया ! 1941 की जनगणना के अनुसार सियालकोट में हिन्दुओं की तादाद दो लाख इक्कीस हजार थी। उस में से तकरीबन एक लाख लोगों ने वोट नहीं दिया था और पचपन हजार मतों से सियालकोट का भारत में शामिल करने का प्रस्ताव गिर गया था ! वैसे यह आदत या चरित्र अभी भी पूरी तरह बदली नहीं है..............!
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बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन ।आज की प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय तल से बहुत बहुत आभार । सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति🌻
जवाब देंहटाएंपोस्ट को सुंदर चर्चा में शामिल करने के लिए आभार।
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