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सोमवार, 20 मई 2024

4132 ...आज जाने की ज़िद न करो

 सादर अभिवादन

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
-शिवमंगल सिंह सुमन
अब कुछ रचनाएं




तुम्हारे नेह की जड़ें गहरी जमी हैं
दिल की ज़मीन पर..,

 बहुत बार खुरचीं मगर दुबारा हरी हो गई ।




अभिव्यक्ति को विस्तार देने
आया सोशल मीडिया,
निजता का अतिक्रमण करने
आया सोशल मीडिया
धंधेबाज़ों को धंधा
लाया सोशल मीडिया
चरित्र-हत्या का माध्यम
बना सोशल मीडिया




बहुमेल उन्हें मेल नहीं ख़ाता
एकला अकेले रहना भाता
जब भी करेंगे बातें कुछ तो
मैं  मैं उनका नजर आता

महफ़िल होगी चारों तरफ
महफिल बीच वीराने होंगे




सुबह अलार्म अपने समय पर बजा. आदतन झटके से उठने की कोशिश की. अस्थि पंजर कड़कड़ा गया. मांसपेशियों ने दिमाग का कहा मानने से इंकार कर दिया. वर्मा डिहाइड्रेशन सा फील कर रहा था. दो दिन के एक्सरशन ने उसके रंगे बालों की कलई खोल के रख दी. सबसे अनुरोध है कि दो-चार दिन कोई वर्मा को ये न बोले - एज इज़ जस्ट नम्बर. कसम से, बहुत गुस्से में है.






आगाज़ गुलाबी ठंड का,
ओंस से नहाई धानी
अंज,कंज लिए महिना
दिसंबर हो चला,

हाथों में अदरक की
सोंधी खुशबू से भरी
एक कप चाय लिए
महिना दिसंबर हो चला ,



रात बीती, लगा शर्वरी जा चुकी
मध्य तम के सितारों की वेला हुई;
जुगनुओं की चमक मंद होने लगी
तारकों के प्रतिष्ठा की हेला हुई।

यूँ ऊषा की आभा प्रखर हो गई
ज्यों दमक सूर्य अश्वारोही हुआ;
बिदक कर उठा सुप्त प्राची पटल
रश्मियुत भोर जग में प्ररोही हुआ।



चलते-चलते एक ग़ज़ल
आज जाने की ज़िद न करो
यूं ही पहलू में बैठे रहो
आज जाने की ज़िद न करो
हाए मर जाएंगे, हम तो लुट जाएंगे
ऐसी बातें किया न करो
आज जाने की ज़िद न करो
तुम ही सोचो ज़रा क्यूं न रोकें तुम्हें
जान जाती है जब उठ के जाते हो तुम
तुम को अपनी क़सम जान-ए-जां
बात इतनी मिरी मान लो




आज बस
कल सखी आएगी
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

  1. पाँच लिंकों का आनन्द की सुन्दर सूत्रों से सजी प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार आ . यशोदा जी ! सादर वन्दे!

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