शीर्षक पंक्ति: आदरणीया रोली अभिलाषा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए सद्यरचित पसंदीदा रचनाएँ-
मन-मस्तिष्क का लावा मुझे जलाता
पर यह आग दिखती क्यों नहीं?
क्यों मैं जलती रहती हूँ?
अंगारों पर चलती रहती हूँ
ख़ुद को आग में जलाती रहती हूँ
सभी के सामने मुस्कुराती रहती हूँ
मेरे जलने-रोने से संसार प्रभा
मैं ही धीरे-धीरे मिटती जाती हूँ
वो जिसके आने से
बरसता है अँधेरा,
राजनीति के आकाश
का नया सितारा है.
लोग यहाँ कविता के
शौक़ीन लगते हैं,
लगाइए अगर कोई
मसालेदार नारा है.
बाग लगाये
घर बनाये
जीने से मगर
मरने तक
मेरे हिस्से कुछ
न आये
*****
रवीन्द्र सिंह
यादव
मेरे हिस्से कुछ न आये
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
आभार
सादर वंदन
बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.आभार.
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