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बुधवार, 8 मई 2024

4120..अब तेरे पैकर के क़सीदे न पढ़ूंगा.

 प्रातःवंदन 

."अष्ट अश्व रथ हो सवार

रक्तिम छटा प्राची निखार

अरुण उदय ले अनुपम आभा

किरण ज्योति दस दिशा बिखार।

सृष्टि ले रही अंगड़ाई,

जाग जाग है प्रात हुई !"

कुलवंत सिंह

लिजिए बुधवारिय भोर की प्रस्तुति में...✍️

उसका चेहरे में कई चेहरे थे...




'जिंदा रहना क्यों जरूरी होता है?' कॉफी पीते-पीते मिताली के होंठों से ये शब्द अनायास ही निकले हों जैसे। जिन्हें खुद सुनने पर वो झेंप गयी। शायद यह सोचकर कि भीतर चलने वाली बात बाहर कैसे आ गयी। 

✨️

रूहानी साँझ

पैगाम जो आहिस्ते दस्तक दे रहे थे रूहानी साँझ को l

करार कही एक छू रहा था इसके सुर्ख लबों साथ को ll

संगीत स्वर फ़रियाद आतुर जिस तरंग ढ़ल जाने को l

✨️

मै सेंटीमेंटल फूल हूं 

मैं अपने पूरे परिवार से भावात्मक रूप से जुड़ा हुआ हूं 

सभी के सुख-दुख में हमेशा ही उनके साथ खड़ा हुआ हूं 

✨️

सदा रहे उपलब्ध वही मन 


यादों का इक बोझ उठाये


मन धीरे-धीरे बढ़ता है,


भय आने वाले कल का भर


ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !

✨️

अब तेरे पैकर के क़सीदे न पढ़ूंगा

सूरज को बुझाने में इस बात का डर है

के उसका तहम्मुल कहीं बरबाद न कर दे

अरसे से क़फ़स में हूं पर सूख गये हैं..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! भोर पर सुंदर कविता की भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं की खबर देते आज के अंक में 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार पम्मी जी !

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