उस ख़ालीपन को जो भर दें
भावों का भी अभाव लगता,
उस सन्नाटे के पीछे तब
जाकर उस अनाम से मिलना !
पत्थरों पर पानी के निशान
सन्देश हैं सभ्यता को
कि मत बनो कठोर,
मत बनो अड़ियल,
पत्थर होकर रुकने से अच्छा है
पानी होकर बह जाना.
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
उस ख़ालीपन को जो भर दें
भावों का भी अभाव लगता,
उस सन्नाटे के पीछे तब
जाकर उस अनाम से मिलना !
पत्थरों पर पानी के निशान
सन्देश हैं सभ्यता को
कि मत बनो कठोर,
मत बनो अड़ियल,
पत्थर होकर रुकने से अच्छा है
पानी होकर बह जाना.
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सुंदर व स्तरीय रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
बहुत बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंकृष्ण ने कहा है, यह जगत एक उल्टे वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें ऊपर हैं, हम उन जड़ों से जुड़ना ही नहीं चाहते, हमने नक़ली जड़ों को खोज कर ली है। शायद इसीलिए आपने सही कहा है कि समाज में बढ़ती हुई अमानवीयता और बर्बरता की बहुलता, तथा असंतुलन हमारी जड़ोंं के खोखलेपन का संकेत है।
सराहनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र, आभार श्वेता जी !
बेहतरीन रचनाओं के मध्य मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी.
जवाब देंहटाएं