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शुक्रवार, 17 मई 2024

4129....ज़िन्दगी के जोड़-घटाव में...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मानवता की सीख बचपन से ही
कंठस्थ करवाया जाता है
जब घर के बड़े समझाते हैं
"सबसे प्यार करो"
"पशुओं पर दया करो"
"भूखे को खाना खिलाओ"
"प्यासे को पानी पिलाओ"
"किसी को अपने फायदे के लिए मत सताओ"
और भी न जाने कितनी अनगिनत बातें होगी
जो हम सभी समझते और जानते हैं।
फिर भी समाज में अमानवीयता और बर्बरता 
की बहुलता,असंतुलन
क्या हमारी जड़ोंं के
खोखलेपन का संकेत है?
या फिर,
मानवता और दानवता के 
दो पाटों में पीसते मनुष्य मन
की कहानी
सृष्टि के विधान के अनुसार? 

आज की रचनाएँ-


इस मंज़िल तक पहुँचने की राहें 
अलग अलग भर हैं ।
ज़िन्दगी भर 
न जाने क्यों 
हर पल 
जद्दोजहद करते हुए 
सही - गलत का आंकलन करते हुए 
ज़िन्दगी के जोड़ - घटाव में 
कर्तव्यों का गुणा -  भाग करते हुए 
एक दूसरे से 
समीकरण बैठाते हुए 
कब ज़िन्दगी रीत जाती है , 
अहसास नहीं होता ।

निंद्रा न नयन उतारी, और जगाओगे! कहो तो ?
थकी मैं भैज-भैज पांती, उत्तर कुछ भी न पाती |
कब तक जीवन साथी, पत्र दे पाओगे! कहो तो ?
नित गोधुली बेला आये, नयन मेरे नीर बहाये |यू



मैंने तकलीफों को रिश्वत नहीं दी
कोई न्यौता भी नहीं दिया
उनकी जी हजूरी भी नहीं की
फिर भी बैठ गयी हैं आसन जमाकर
जैसे अपने घर के आँगन में
धूप में बैठी स्त्री
लगा रही हो केशों में तेल
कर रही हो बातचीत रोजमर्रा की
इधर की उधर की
तेरी मेरी


उस ख़ालीपन को जो भर दें  

भावों का भी अभाव लगता, 

उस सन्नाटे के पीछे तब

जाकर उस अनाम से मिलना !




पत्थरों पर पानी के निशान

सन्देश हैं सभ्यता को 

कि मत बनो कठोर,

मत बनो अड़ियल,

पत्थर होकर रुकने से अच्छा है 

पानी होकर बह जाना. 



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर व स्तरीय रचनाएं
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात !
    कृष्ण ने कहा है, यह जगत एक उल्टे वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें ऊपर हैं, हम उन जड़ों से जुड़ना ही नहीं चाहते, हमने नक़ली जड़ों को खोज कर ली है। शायद इसीलिए आपने सही कहा है कि समाज में बढ़ती हुई अमानवीयता और बर्बरता की बहुलता, तथा असंतुलन हमारी जड़ोंं के खोखलेपन का संकेत है।
    सराहनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र, आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं

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