सत्य की सदा जीत होती है।
रही है कि मालूम होता है सत्य को काठ मार गया है।
परोसता, आज मीडिया की भूमिका उस सेल्समैन की भाँति है
जो जनमानस को लुभावने और प्रचलित उत्पाद सनसनी
बनाकर परोसता है।
हाँ मानती हूँ चंद मुट्ठीभर ईमानदार हैंं
पर उनका भी वही हश्र है जो हर क्षेत्र में ईमानदारी का है।
-श्वेता
सर्द-सत्वर झकोरे तिरस्कृत हुए;
मेदिनी अनमनी सी धरा पर पड़ी
कृष्ण-मेघों के उत्पल पुरस्कृत हुए।
#रात गणिका बनी, भृत्य बन चंद्रमा
इन कुंतल-कथाओं में किंकर बने;
पीड़ितों की व्यथा मंद करने सबब
गेसुओं के भ्रमर नेक सहचर बने।।
एक ही पेड़ था
जो ठीक मेरी खिड़की के नीचे खिलता था
उन्हें छू कर
अपने उखड़ने का दुख भूल जाती थी
यह वृक्ष नहीं, एक सेतु था
रश्मि तपिश दे तनकर ऐंठी ।
बदरा जाने कहाँ खो गये,
पर्णहीन सब वृक्ष हो गये ।
माँ धरती भी दुःखी रो रही,
दया आपकी कहाँ खो गयी ?
एक कउआ उड़ता हुआ चोंच में एक तिनका दबाए हुए आया और बैठ गया हिरण की पीठ पर। उछलते-उछलते गरदन पर चढ़ गया और कान में तिनका घुसेड़ने लगा। हिरण घबड़ा कर दौड़ा और कउआ उड़ चला!
एक नीम के खोते में बैठा था उल्लूओं का जोड़ा, मैं जैसे-जैसे पास जाता, उनकी ऑंखें चौड़ी होती जाती! मैने सोचा, उजाले में उल्लू कहाँ देख पाते हैं और पास चलते हैं। पास जा कर फोटू खींचने लगा तो फुर्र से उड़ गए!!!
सुंदर रचनाएं
जवाब देंहटाएंपठनीय व संग्रहनीय
आभार
सादर वंदन
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएंबदलते दौर में सच में झूठ की ऐसी मिलावट पायी जा रही है कि मालूम होता है सत्य को काठ मार गया है।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति
सभी रचनाएं उम्दा एवं पठनीय ।
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं सस्नेह आभार प्रिय श्वेता !