सादर अभिवादन
कल मातृ-दिवस
सानन्द सम्पन्न हुआ
कतिपय लोगों नो लम्बी सांस ली
उन लोगों को लिए
मातृ-दिवस मात्र कल तक के लिए था
पर वे ये भूल गए कि उनकी जन्मदात्री माँ
जीवित है और उनके ही साथ रहती है
कुछ रचनाएं
माँ तो गांव से आई हैं उन्हें नहीं मालुम कि अब शहरों में नदी-तालाब नहीं होते जहां इफरात पानी विद्यमान रहता था कभी। अब तो उसे तरह-तरह से इकट्ठा कर, तरह-तरह का रूप दे तरह-तरह से लोगों से पैसे वसूलने का जरिया बना लिया गया है। माँ को कहां मालुम कि कुदरत की इस अनोखी देन का मनुष्यों ने बेरहमी से दोहन कर इसे अब देशों की आपसी रंजिश तक का वायस बना दिया है। उसे क्या मालुम कि संसार के वैज्ञानिकों को अब नागरिकों की भूख की नहीं प्यास की चिंता बेचैन किए दे रही है। मां तो गांव से आई है उसे नहीं पता कि लोग अब इसे ताले-चाबी में महफूज रखने को विवश हो गये हैं।
फहराया पीतांबर..
नील गगन के पथ पर
सूर्य रश्मि ले चली
बदली की गगरी
छलकाती स्वर्ण
हुआ स्वर्णिम पर्व ।
भारत में चुनावों का मौसम चल रहा है। यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व है।चारों ओर एक उत्सव का
सा माहौल नज़र आता है। हर सड़क, गली, नुक्कड़ और चौपाल पर चहल-पहल है।देश ही
नहीं विदेशों में भी भारत के चुनाव का जादू चल गया लगता है।
माँ तुम गंगाजल होती हो
मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगाजल होती हो
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और आईएनडीआईए के घटक दल संविधान को बदलने का नैरेटिव गढ़ने का प्रयत्न रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपने चुनावी भाषणों में भारतीय जनता पार्टी पर संविधान बदलने की मंशा का आरोप लगा रहे हैं। जनता को ये बताकर भयभीत करने का प्रयत्न भी कर रहे हैं कि अगर नरेन्द्र मोदी की सरकार बनती है
हरी शाल ओढ़े ज़मीन हो उठता मन
करता है चहल कदमी यादों की बेतरतीब घास पर
समय की करवट जाने अनजाने ले आती है सैलाब
कीचड़ होता प्रेम डूब जाता है नाले में
उठती है अजीब सी जिस्मानी गंध
मतगणना के दिन EVM में डाले गए कुल वोटों का मिलान उम्मीदवारों या उनके एजेंटों की उपस्थिति में फॉर्म 17C से किया जाता है. काउंटिंग सुपरवाइजर फॉर्म 17C के पार्ट 2 में स्पष्ट करता है कि गिने हुए वोटों और दर्ज हुए वोटों की संख्या में कोई गड़बड़ी नहीं है. इसे चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और एजेंटों द्वारा साइन भी किया जाता है. अगर गिनती में कुछ कम-ज्यादा होता है, तो उम्मीदवार इसको चुनौती दे सकता है.
मेरे पाँवों में लोहे की बेड़ियाँ सही,
मेरे ख़्याल अब भी आज़ाद हैं,
जैसे नदी को बाँध लेने से
चुप नहीं हो जाता उसका संगीत.
आज बस
कल सखी मिलेगी
सादर वंदन
प्रभावी हलचल … आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंयशोदा सखी, चुनावी सरगर्मी और जानकारी, मातृ दिवस पर भावपूर्ण लेखन, मतदान के लिए आग्रह। सामयिक विवेचन। बहुत अच्छा लगा । अमलतास की छाँव में बैठ कर पढ़े गए। अनेकानेक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुसंध्या ! समसामयिक सराहनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन. आभार.