सादर अभिवादन
कल का दिन
कतई व्यस्त नहीं था
मेरे लिए ...आराम से सोती रही
कारण कि बिजला नहीं थी
आइए देखे कुछ नई रचनाएं ...
थोड़ा तिरछा है थोड़ा आड़ा
प्यार तुम्हारा 13 का पहाड़ा
ना भूलूँ न पूरा याद रहे
कोई पूछे न ये फरियाद रहे
यह ब्लॉग पोस्ट लिखते हुए मुझे श्री दनकौरी जी के दो अशआर याद आ गए :
शे'र अच्छा-बुरा नहीं होता,
या तो होता है या नहीं होता।
ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत की ख़ुश्बू से तर है,
चले आईए ये अदीबों का घर है।
-दीक्षित दनकौरी
इक को कोलाहल ने इक को
चुप्पियों ने मार डाला ।।
इक मरा भजनों से इक को
गालियों ने मार डाला ।।
हैं कई जो पूर्णिमा को
चंद्र किरणों से मरे सच ,
कुछ को प्रातः काल की
रवि रश्मियों ने मार डाला ।।
अरे यार,मेरी मेड छुट्टी बहुत करती है
क्या बताएं , कामचोर है मक्कार है
हर समय उधार मांगती रहती है
कामवाली के नखरे बहुत हैं
पूरी हीरोइन है , चोर है
जब देखो बीमारी का बहाना…
कहीं ईंट कहीं रोड़ा जोड़ना है राजनीति ।
इसे पकड़ना उसे छोड़ना है राजनीति।।
आज बस
कल हम सब मिलकर
मातृ दिवस मनाएंगे
सादर वंदन
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