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बुधवार, 29 मई 2024

4141 ..राम निकाल ये सारे रावण मेरी राम कहानी से

 सादर अभिवादन

उग्र रूप धारण कर जिसमें दिनकर भूमि तपाते हैं,
हो जाते हैं शुष्क जलाशय वृक्षादिक कुम्हलाते हैं।
प्राणिमात्र गर्मी से जिसमें होते हैं अतिशय बेहाल,
आया वही निदाघ काल यह दुस्सह काल-समान कराल॥

उत्साहित कर दावानल को दिनकर प्रखर करों द्वारा,
जीव-जंतुओं से परिपूरित विपिन जलाते हैं सारा।
महा भंयकर दृश्य देख यह प्राण विकल हो जाते हैं,
खांडव-दाही पांडव के शर किसको याद न आते हैं?


-  मैथिलीशरण गुप्त

कुछ रचनाएं



वृद्धाश्रम में रहते मित्र की मृत्योपरांत,
केशव और वृद्धाश्रम संचालक,
उनके बेटे को फ़ोन करते रहे
पर वह नॉर्वे से नहीं आया।
निराश केशव ने अंतिम संस्कार
स्वयं करने की इच्छा अपने
बेटे ऋषभ को बताई।
बेटा रोष में बोला,





देखा है नन्हें नन्हें हाथों को
पुस्तकों की जगह
ढो रहे बोझ अपने घर का
किसी को हंसाती और किसी को
रुलाती
किसी के हिस्से बांटे खुशियां
किसी के नसीब में ग़मों का साया




ढूंढने से ख़ुदा तो मिलता है
किसको मिलता है ये ख़ुदा जाने

दर्द घनेरा हिज्र का सहरा घोर अंधेरा और यादें
राम निकाल ये सारे रावण मेरी राम कहानी से




चाय गरम चाय !
सुनते ही महाराज !
आँख खुल जाय
नींद भग जाय !

जो चर्चा की जाय
पी-पी कर चाय !
झट्ट समझ में आय
वेद वाक्य बन जाय !



आशाएँ पलती हैं अनगिन
लेकिन त्याग बहुत छोटा सा,  
अंबर पर है सूरज का घर
आख़िर कैसे मिलन घटेगा !


आज बस
कल भाई रवींद्र जी
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

  1. समंदर किनारे सूरज को देखते हुए, एक कप चाय साथ, हाथ में किताब. और दद्दा की बात ! बात बन गई, आदरणीया सखी. धन्यवाद एवं अभिनन्दन.

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