शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
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शायरी | इश्क़ का पर्चा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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झुलस रहा है कन-कन
कब बरसोगे घनश्याम
तपन से दरक रही धरती
लगे नहीं शीतल सी शाम
सूरज का पारा बढ़ता जाये
कोमल काया झुलसाये
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सूना जग सूना मन
तुमसे पाया जीवन धन
छाया बनकर साथ रहे
पीर कहे अब किससे मन।
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सुंदर अंक दिया है
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
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