शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय
अंक
में पढ़िए चुनिंदा पाँच रचनाएँ-
ना जाने क्यूँ बात-बात
पर
भर आती हैं आँखें,
यादों के पंछी इस आँगन
गिरा गए फिर पांखें!
उतरेंगे वे बाग तुम्हारे
कल दाने चुगने को।
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को!
*****
खोलते जो आँख दिख जातीं
कई दुश्वारियाँ
बंद आँखों देखने की भूल
हमसे हो गई!
रौंद डाला हर कली को नोंच
कर जिस शख्स ने
बागबाँ उसको ही समझे भूल
हमसे हो गयी!
*****
*****
अनंत
ब्रह्मांड में छोड़ दिये गये हैं
जिसके
द्वारा हम
दिशाहीन
से, उसके
लिये
हित
अपना साधना है
जहाँ
लगता है
पूरी
आज़ादी है
लेकिन
एक सीमा में
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर चयन
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
सुप्रभात ! बुद्ध पूर्णिमा की सभी को शुभकामनाएँ ! सराहनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक रचनाओं का चयन। बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक बधाई💐👏
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