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सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

4034..बस यूँ ही प्रेम चलता रहता है

 सादर अभिवादन..

पढ़िए कुछ रचनाएं ...

प्रेम ..दिगंबर नासवा

अब तो गीत गुनगुनाता हूँ, बारिश में नहाता हूँ
लोग तो लोग ... मैं भी कहता हूँ
अब ज़िन्दगी जीता हूँ ... हाँ ... मैं प्रेम करता हूँ ...

सरसों .....पुरूषोत्तम सिन्हा

मोहक लागे, मोहे वो बंधन, वो धागे,
पीत, आंचल संग,
बांध गई, बरसों पहले, 
जो सरसों
सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

प्रेम क्या है ...रूपा सिंह

बस यूँ ही.. 
प्रेम चलता रहता है
दिल बहलता रहता है
रुत आती हैं 
कभी गुदगुदा कर चली जाती हैं
तो कभी जख्म कुरेद जाती हैं..
शेष रह जाती हैं बस यादें..

ख्वाब....मन और मैं ......उर्मिला सिंह

कभी कभी मन ख़्वाबों के .....

वृक्ष लगाने को कहता......
सीचने सावारने को कहता....
दिमाग कहता ....
पगली !तेरे पौधों को सीचेंगा कौन
किसे फुर्सत है .....
तेरे ख्वाबों को समझने का......

रामायण का सबसे तिरस्कृत पात्र, मंथरा ...कुछ अलग सा

कैकेई का अपनी इस चचेरी बहन के साथ बहुत लगाव तथा प्रेम था ! दोनों बचपन की सहलियां भी थीं ! एक-दूसरे के बिना उनका समय नहीं बीतता था ! इसीलिए मंथरा की ऐसी हालत देख, उसके भविष्य को ले कर कैकेई भी चिंतित व दुखी रहा करती थी ! इसीलिए अपने विवाह के पश्चात उसको अपने साथ अयोध्या ले आई थी ! परंतु उसके रंग-रूप को देख अयोध्यावासी उसे कैकई की बहन नहीं बल्कि मुंहलगी दासी ही समझते थे.......!
*****

फिर मिलेंगे। 

यशोदा अग्रवाल 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आभार भाई रवीन्द्र जी
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर हलचल … आभार मेरी रचना को शामिल किया आपने …

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक आभार हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचना एक से बढ़कर एक हैं। रचनाओं का सुंदर संकलन और इसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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