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गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

4051...वो दुनिया नहीं जो हमें तोहफ़े में मिली है...

शीर्षक पंक्ति आदरणीया नूपुरं जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

      आज वर्ष का साठवां दिन है अर्थात 29 फरवरी। ग्रेगोरियन कलेंडर (जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है) के अनुसार यह दिन प्रत्येक चौथे वर्ष के अंतराल पर गणना में आता है। चूँकि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर पूर्ण करने में 365 दिन घंटे और  9 मिनट का समय लगता तो तीन वर्ष तक साल को हम 365 दिन का मानते हैं  और चौथे वर्ष शेष बचे अतिरिक्त घंटों व मिनटों को जोड़कर एक दिन मान लेते हैं (6 घंटे X 4 = 24 घंटे/एक दिन) अतः चौथे वर्ष साल के दिन 366 गिने जाते हैं। जिस वर्ष में 366 दिन हों और माह फ़रवरी 29 दिन का हो तब उसे लीप ईयर (Leap Year) कहते हैं। यहॉँ Leap का अर्थ है छलाँग अर्थात समय का अतिरिक्त छलक जाना।

     भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी भाई देसाई का जन्म दिवस चर्चित रहा क्योंकि वे 29 फ़रवरी 1896 को जन्मे थे और 99 वर्ष पूर्ण करते हुए 10 अप्रैल 1995 को उनका निधन हुआ। अगर वे अगले वर्ष (29 फ़रवरी 1996) तक ज़िंदा रहते तो वे अपने जीवन के सौ वर्ष पूर्ण कर लेते और अपना 25 वां जन्म दिवस मना लेते।

बहरहाल अब आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

सोच

वो दुनिया नहीं जो हमें

तोहफ़े में मिली है,

ईश्वर ने दी है।

वो दुनिया जिसे

हमने मनमानी कर के

बिगाङा है ख़ुद,

और कोसते रहते हैं

हालात को दिन-रात।

बस यूं ही......

मरहम चले लगाने तो गुनहगार हो गए हम

तेरे यादों के पन्नों में ख़ाकसार हो गए हम ।।

 

जब तक कलम से भाओं की बरसात नही होती

ऐ जाने ज़िगर हमारी दिन और रात नही होती।।

अदृश्य कारागृह--

विस्तृत नीलाकाश

अक्सर फेंकता रहता है
इंद्रधनुषी फंदे, दिन
और रात के मध्य
घूमता रहता
है सपनों
का
बायस्कोप

पिरामिड वैली

आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही आँख खुल गई। छोटी ननद के लिए जन्मदिन की कविता लिखी, मंझले भाई का जन्मदिन भी आज है, उसे भी शुभकामना भरी कविता भेजी। जीसस वाली किताब में पढ़ा, लेह की हिमिस मोनेस्ट्री में कुछ दस्तावेज मिले हैं , जिनके आधार पर कहा गया कि ईसा भारत आये थे।शाम को पापा जी से बात हुई, उत्तर भारत में ठंड बहुत बढ़ गई है, उन्होंने कहा तापमान शून्य हो गया था। दिल्ली में वर्षा हो रही है। यहाँ बैंगलुरु का मौसम सुहावना है, पर कब बदल जाएगा, कहा नहीं जा सकता।

मैनिकिन (पुतले) राजनीति के

ऐसे दसियों नाम हैं जिन्होंने सदनों में शायद ही कभी मुंह खोला हो ! कई तो सत्र में आते ही नहीं ! बहुतेरे ऐसे हैं जो अपने संसदीय क्षेत्रों में जाने से गुरेज करते हैं ! इस सब के बावजूद राजनीतिक दल उनके तथाकथित आभा मंडल से चौंधिया कर बार-बार उन्हें अपना टिकट थमाते रहते हैं ! अभी एक नेत्री को अपने चार कार्यकालों में कोई भी उपलब्धि न होने के बावजूद पांचवीं बार टिकट दिए जाने पर काफी बहसबाजी हुई थी ! इस वर्ग में अधिकांश लोग ऐसे ही हैं जो देश के इन सम्मानित सदनों में, आम इंसान की गाढ़ी कमाई के एवज में सिर्फ अपने चेहरे, अपने कपड़ों, अपने आभूषणों, अपने रसूख का प्रदर्शन करने आते हैं !

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी उन्तीस फरवरी.की प्रस्तुति
    षहली बार..
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  3. सोच के लिंक में वही समस्या है | ब्लोगर खुल रहा है |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर प्रणाम सर, त्रुटि सुधार कर दिया गया है।

      हटाएं

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