शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अरुण चंद्र रॉय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आइए आज पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-
पीत वसना
प्रणयिनी वसुधा
सकुचाई सी
उम्र के एक
मुकाम पर
पहुँचने के
बाद,
बस यही लगता
है कि प्रेम है -
प्रार्थना, दुआ, सलामती की कामना
दो हृदयों का
एक हो जाना,
और उनकी भावनाओं का भी।
बस एक मजबूत सी किवाड़ है
हमारे दरमियान
इधर हवा की सरगोशियाँ है
उधर यादों का बहिश्त
मेरे हाथ में सांकल है
मगर खटखटा सके गुजरे वक्त
को
अब वो हिम्मत नहीं बाकी...
हे हंसवाहिनी सरस्वती!.. प्रार्थना गीत
माँगूँ सानिध्य आपका मैं
माँ ज्ञान मिले अज्ञान हटे
हम नित अनुभव के धनी बनें
कल्पना लोक में रहें डटे
पाठन औ पठन ही जीवन हो
जीतें अबोधता से हर रण॥
या टूटे हुए तारों को देख कर
मांगी गई मन्नतें भी
नहीं होती हैं पूरी
नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां
बांधों के भीतर
वसंत पंचमी/शारदे प्रादुर्भाव दिवस
सप्त
सुर लय ताल का उपहार दो,
ज्ञान
का अनुपम अतुल भंडार दो।
अनवरत नूतन सृजन करती रहे,
लेखनी को शारदे वह धार दो।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
वक्त के साथ
जवाब देंहटाएंफिर रूप बदलता है प्रेम का !
बेहतरीन अंक
आभार
ऋतु बसंत में मां सरस्वती की अभिव्यंजना के साथ साथ प्रेम पगी सुंदर मनहर रचनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बसंतोत्सव की बधाई💐👏
सुप्रभात, वसंत पंचमी के अवसर पर सुंदर रचनाओं की प्रस्तुति, शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन 🙏
जवाब देंहटाएंमाँ वाग्देवी के आशीष से रची गईं और प्रेम के बसंती रंग में रंगी सुंदर रचनाओं का संकलन। सादर आभार आदरणीय रवींद्रजी।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद ब्लॉग में कुछ पोस्ट किया। आपलोगों की प्रतिक्रिया पाकर उत्साहित हूं। सभी को दिल से धन्यवाद।
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