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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

4037...नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां बांधों के भीतर ...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अरुण चंद्र रॉय जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

आइए आज पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-

आया वसंत

पीत वसना

प्रणयिनी वसुधा

सकुचाई सी

प्रेम

उम्र के एक मुकाम पर

पहुँचने के बाद,

बस यही लगता है कि प्रेम है  -

प्रार्थना, दुआ, सलामती की कामना

दो हृदयों का एक हो जाना,

और उनकी भावनाओं का भी।

बसंत के आने उम्मीद...

बस एक मजबूत सी किवाड़ है
हमारे दरमियान
इधर हवा की सरगोशियाँ है
उधर यादों का बहिश्त
मेरे हाथ में सांकल है
मगर खटखटा सके गुजरे वक्त को
अब वो हिम्मत नहीं बाकी...

हे हंसवाहिनी सरस्वती!.. प्रार्थना गीत

माँगूँ सानिध्य आपका मैं

माँ ज्ञान मिले अज्ञान हटे

हम नित अनुभव के धनी बनें

कल्पना लोक में रहें डटे

पाठन औ पठन ही जीवन हो

जीतें अबोधता से हर रण॥

प्रेम

या टूटे हुए तारों को देख कर

मांगी गई मन्नतें भी

नहीं होती हैं पूरी

नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां

बांधों के भीतर

वसंत पंचमी/शारदे प्रादुर्भाव दिवस

सप्त सुर लय ताल का  उपहार दो,

ज्ञान का अनुपम अतुल भंडार दो।

अनवरत  नूतन  सृजन  करती रहे,

लेखनी  को  शारदे  वह  धार  दो।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त के साथ
    फिर रूप बदलता है प्रेम का !
    बेहतरीन अंक
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. ऋतु बसंत में मां सरस्वती की अभिव्यंजना के साथ साथ प्रेम पगी सुंदर मनहर रचनाएं।
    सभी रचनाकारों को बसंतोत्सव की बधाई💐👏

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात, वसंत पंचमी के अवसर पर सुंदर रचनाओं की प्रस्तुति, शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. माँ वाग्देवी के आशीष से रची गईं और प्रेम के बसंती रंग में रंगी सुंदर रचनाओं का संकलन। सादर आभार आदरणीय रवींद्रजी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत दि‍नों के बाद ब्‍लॉग में कुछ पोस्‍ट कि‍या। आपलोगों की प्रति‍क्रि‍या पाकर उत्‍साहि‍त हूं। सभी को दि‍ल से धन्‍यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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