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सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

3929 ज़िंदगी ...कब कहाँ ,पटरी से उतर जाए किसे पता

 सादर अभिवादन

विदा अक्टूबर

ज़िंदगी ...कब कहाँ
रेल सी
पटरी से उतर जाए
किसे पता

सपने ... कब कहाँ
रेत से
हाथों से फिसल जाएँ
किसे पता
-मंजू मिश्रा

रचनाएं देखिए

जब दुनिया में हम आए,
रोना बहुत आया था
पर अन्य सब हुए प्रसन्न
ढोलक पर सोहर गाई गई
नेग बाट मिठाई बाटी गई


शहतूत के घने पेड़ पर
जो था रैन बसेरा
अनेक जीवों का
दूर करता था जो सूनापन
बस्ती थी जहाँ अनेक ज़िंदगियाँ
है आज वीरान  सुनसान




तुम्हारी जाने के पश्चात
मैंने गढ़ ली है
प्रेम की एक अलग सी दुनिया
जिसमें रात की टोकरी में
समय अपनी पैनी हथेलियों से
लिखता है चांद की पीठ पर मेरा विरह


कि ज़िन्दगी गुजरी हो
चाहे ऐसे -वैसे ही
दिखाने मौत पर अमीरी हमारी
आ जाना जाने
लगूं तो आ जाना  
हँसाया हो, रुलाया हो
खरी - खरी सुना दी हो
कोई सलाह दे दी हो
कभी किसी काम आयें हो
कि असर रहा हो हमारा भी
तुम पे थोड़ा सा
एहसास कराने आ जाना
जाने लगूँ तो आ जाना

आज बस
कल मिलिएगा श्वेता जी से
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीया मैम, सादर चरण -स्पर्श । आज लंबे समय बाद ब्लॉग पर पुनः सक्रिय हो रही हूँ । जीवन के अंतिम सत्य से परिचित कराती अत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति । वियोग एवं/या मृत्यु जीवन का एक कटु सत्य है जिसे हम स्वीकार नहीं करना चाहते पर यह कभी न कभी हमारे सम्मुख आ ही जाता है । इस सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार एवं आपको पुनः प्रणाम ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वैसे सोंचा था कि कहाँ थी इतने दिनों, यह बताऊंगी और शुभ समाचार भी दूँगी पर इतनी भावपूर्ण प्रस्तुति के बाद सोंचती हूँ यह बात कल के लिए ही छोड़ दूं।

      हटाएं
  3. अनिश्चितता तो है, पर हताशा नहीं होनी चाहिए

    जवाब देंहटाएं

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