सभी का स्नेहिल अभिवादन।
नहीं खा पाते,
चने और देसी घी के लडडू।
अधिकांश तो
रोटी के लिए
मारे-मारे फिरते हैं
छत-छत, टेशन-टेशन
सुना है…,
उनकी लिस्ट में अपना
नाम नहीं है
दुनियादारी की परिपाटी
कहती है कि..,
रस्म अदायगी तो अब
अपनी तरफ से भी बनती है
निभाने की परम्परा
सभ्य होने की परिचायक है ।
संसारिक आमोद प्रमोद को, भावनाएं उमड़ती होगी,
पर गीता में हाथ रखकर, प्रण सौगंध जो लिया होता,
परिणीता प्रणय से पहले, प्रणय भारत माता से होता।
वो साथी सखा राधा से बढ़कर
वो ग़म अपना छुपाना चाहती है
पर आंसू गिरते पलकों पे चढकर
जितना खुश वो मिलन से है, उतनी ही बिछड़ने से हताश
हाँ है वो मेरे लिए खास
अपने देवता के साथ ऐसा व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये, जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं ।
आज के इस अंक में वजन है
जवाब देंहटाएंसत्कार करती हूं..
आभार..
सादर
सदैव की भाँति सुन्दर सारगर्भित भूमिका के साथ लाजवाब सूत्रों के साथ अति सुन्दर प्रस्तुति । “क्षणिकाओं” को संकलन में स्थान देने के हृदयतल से हार्दिक आभार श्वेता जी ! सस्नेह सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएं"हाँ है वो मेरे लिए खास " मेरी इस रचना को आज के अंक मे स्थान दे कर आपने उसे और भी खास बना दिया, आपका बहुत-बहुत आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबांकी सभी रचनाकारों की रचनाओं से भी बहुत कुछ सीख मिली, सभी को बधाईयाँ
मंगल की मांगलिय मंगल ध्वनि के साथ उत्कृष्ट रचनओं का संकलन, एक सैनिक की कलम को जगह देने का आभार आदरणिया 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंआभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं