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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

3925 ..इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां

 सादर अभिवादन

माता रानी को सादर नमन
आज  भाई रवीन्द्र जी को आना था
वे अचानक इटावा चले गए
बस फिर क्या था..
सादर
अब रचनाएं देखें




बुझते बुझते जल उठी मशाल जब,
आँधियों में एक बस्ती जल गई.

देर से मगर इसे समझ गया,
आग तेज़ हो तो दाल गल गई.




"मिथक कथानुसार सीता स्वयं रावण का नाश कर सकती थी।लेकिन उदहारण देना था, मुश्किलों में जीवन साथी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हालात का निडरता के साथ सामना करना चाहिए। एकदम से किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए••!"





बगल वाली सीट का
ये पहला कमाल था...
न चाहते हुए भी
रूह में उठा इक धमाल था।
और प्रेम रसायनों के उत्सर्जन से
समझ, सोच या विवेक जैसे
शब्दों का शुरु हो चुका था
जीवन से पलायन।





दरअसल ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन घाट पर प्रतिदिन होने वाली गंगा आरती के 
दौरान कल विजयादशमी के अवसर पर आरती के साथ ही 
विशेष आयोजन भी किए गए थे।
....एक रिपोर्ट




ना समझा इश्क ने कभी हमें
ना हम समझ सके कभी इश्क को।
इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां
उस तरफ वो चुप्पियां सुनते रहे।।


आज बस
कल मिलिएगा श्वेता जी से
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. सुनहरी हलचल ... आभार मेरी गज़ल को शामिल किया ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह 👍👍 बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए .. बस यूँ ही ...

    जवाब देंहटाएं

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