शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अनीता जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंकों के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
कठिन जगाना जगे हुए को
जल से तेल न होता हासिल,
फिर भी जतन यहाँ जारी है
दूर दिखायी देता साहिल !
हौले-हौले, मद्धिम होती रही
रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!
सुलझे कब, ऐसे उलझन,
विस्मित, दो तीर, खड़ा मन,
अपना लूं, सुबह के पल,
या, मद्धिम सी रात!
चंचल ये मन
मान सखी वश में किसके कुछ मांगत खास।
मांग बढ़े
नित ही इसकी बढ़ती अपने उर की नित आस।
भृंग बना
यह डोलत है हम तो इसके बनते बस दास।
कंचन सा तन
ये मन शापित ईश बिना कब होत उजास।
श्राद्ध व पिंडदान करना गया (बिहार) में क्यों सर्वोपरि माना जाता है
हमारे धार्मिक कर्मकांडों अथवा त्यौहारों के पीछे कोई न कोई कथा सहज रूप में देखने-सुनने को मिलती है। इसी कड़ी में पितृपक्ष में गयाधाम (बिहार) में ही पूर्वजों का श्राद्ध करने के पीछे विभिन्न धर्म ग्रंथों में मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार गयासुर नामक राक्षस के राक्षसी कार्यों से धरती बहुत आक्रांत थी। उसके दुष्क्रमों से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु को स्वयं आना पड़ा। भगवान विष्णु ने अपने पैर से उसे इसी स्थान पर दबा दिया था। वह जब भगवान विष्णु के पैरों तले दबकर मोक्ष प्राप्त कर रहा था, उस समय उसने विष्णु भगवान से यह वरदान मांगा कि इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा उससे हो। भगवान विष्णु के वरदान से यह क्षेत्र गयाधाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदे
सुप्रभात ! 'मन पाये विश्राम जहां' को आज के अंक में स्थान देने हेतु आभार रवींद्र जी, सभी रचनाएँ पढ़ीं आपका चयन उत्कृष्ट है।
जवाब देंहटाएंशानदार अंक !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय अंक हार्दिक बधाई सभी रचनाकारों को।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुन्दर प्रस्तुतियां शानदार अंक
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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