सादर अभिवादन।
युद्द लड़े जाते रहे हैं तमाम हथियारों
से,
अब युद्द जीते जाएँगे झूठ के हथियारों।
-रवीन्द्र
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंकों के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
चित्र साभार:गूगल
बड़े जतन से कुम्हार
गढ़ता है सबसे पहले पैर
और आखिरी में आँख ।
नीचे
तक पूरी
इमदाद नहीं
पहुँची,
ऊपर
आख़िर कुछ तो गड़बड़झाला है।
माँ
से
बेहतर
कौन
समझने
वाला
है।
मकान है बड़ा और घर में नहीं कोई नौकर,
आधा दिन हम रसोईघर में बिताने लगे हैं।
नहीं कोई संगी साथी, रहते हैं दिन भर अकेले,
मानो सूनी गलियों में चौकीदारा निभाने लगे हैं।
उधेड़बुन : उपचारिका की डायरी : एकालाप शैली
25 जून 2014
बता दूँ! नहीं बताती हूँ! झूठ कैसे
बोलूँगी... बता ही देती हूँ! लेकिन बता देने के बाद जो परिणाम होगा उसकी
जिम्मेदारी किसके कन्धे पर होगी। सेक्सटॉर्शन में फँसकर बुजुर्ग ने आत्महत्या करने
का प्रयास किया है। दो दिन के उलझन के बाद आज बुजुर्ग के बेटे को बता ही दिया।
उसने वादा किया है। शान्ति से सोच समझ कर समस्या का हल निकालने में मेरी मदद लेगा।
अम्माँ कहती थीं कि बचपन में हम बहुत जिद्दी थे और शाम होते ही जाने कौन सा, किस जन्म का दु:ख याद आ जाता था कि रोज रोने लगते और किसी
तरह नहीं चुपते थे. आज भी शाम होने पर कभी-कभी वो अंदर छिपी बच्ची उदास हो जाती है
बेवजह. अम्माँ नौकर को कहतीं " जा मुल्लू इन्हें साहब के पास क्लब लेकर जा!” एक दो घन्टे बाद ताताजी के कान्धे पर बैठे हम खूब हंसते-
खिलखिलाते लौटते.
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं के लिए आभार
सादर
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं सादर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक 🙏
जवाब देंहटाएं