अपनी सोचें जग को गोली
तेली के घर जाए निष्ठा
गाँठ टका हो मोटा भइया
माला आती लिए प्रतिष्ठा
मन दिगम्बरी खोट छिपे तो
जाली को ही वस्त्र समझिए।।
नदी का पानी झर झर झर झर
नदी के पत्थर गोल
नदी किनारे बच्चे खेलें
पिट्ठू, किरकट, और बॉल
एक दिन, जाने किधर से
नदी में पहुंचा एक मगर
पहले उसने मछलियाँ खाईं
फिर तीर पर की नज़र
और चलते-चलते
आज हमारे अस्पताल में एक आकस्मिक मीटिंग के लिए बुलाया गया था। मीटिंग में हमें बताया गया कि हमारा हॉस्पिटल कोविड के मरीजों को भर्ती करेगा और हमें खुद को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। हम घर परिवार से दूर होंगे। मेरी बेटी एक साल की रिया को छोड़कर कैसे जाऊँ? अस्पताल ने मेरा नाम पुन: राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा है। नहीं जाऊँ तो श्रम से की गयी सेवा के बदले जो सम्मान मिला है वह धूल धुसरित हो जायेगा!
जय मातारानी की
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अंक
आभार...
सादर...
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं सादर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! पठनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, नवरात्रि की शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छुटकी
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
सुन्दर संग्रह
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