शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जिन लोगों में आत्म-बोध की प्रबल भावना होती है, वे अपनी शक्तियों और कमजोरियों के प्रति अधिक जागरूक होते हैं, अधिक आत्मविश्वासी होते हैं और उनमें उच्च आत्म-सम्मान होता है । इसके विपरीत, जिसकी व्यक्तिगत पहचान संरचना जितनी अधिक फैली हुई है, व्यक्ति उतना ही अधिक भ्रमित प्रतीत होता है और उनका आत्म-सम्मान उतना ही कमजोर होता है।
व्यक्तिगत पहचान का निर्माण और विकास समाज, परिवार, दोस्त, जाति, नस्ल, संस्कृति, धर्म, स्थान, रुचि, , बौद्धिक स्तर,आत्म-अभिव्यक्ति और जीवन के अनुभवों जैसे विभिन्न आंतरिक और बाह्य कारकों से प्रभावित होता है।
एक प्रश्न है मेरा
पर क्या आपने
अपने अस्तित्व को
चिन्हित करते सारे आभूषण
उतारकर कभी
स्वयं को पहचानने के प्रयास किया है?
स्वयं पर लगे नाम,उपनाम,जाति,
धर्म,शहर,गाँव के स्टीकर को अलग करके
पहचानने का प्रयास किया है?
आइये अब पढ़ते हैं आज की रचनाओं को
कैनवास पर अधबनी
स्त्री की खूबसूरत देह से
सरकने लगा है आवरण
चीख रही है स्त्री की छवि
कह रही है
मैं निर्वस्त्र नहीं होना चाहती हूं
कलाकार की लंबी उंगलियां
सिकुड़ने लगी हैं
और वह
आर्ट गैलरियों की अंधी गुफा में
कैद कर लिया गया है
रंगीनियों में जो बीती है
जीवन-यात्रा समस्त जीवन भर,
भला फिर क्यों ओढ़ना मर कर
अपनी अंतिम यात्रा में भी
भगवा या केवल सफ़ेद वस्त्र ?
'ब्रांडेड' भी जो होते शववस्त्र सारे
जैसे .. 'रेमण्डस्' या फिर 'मान्यवर'।
विकल्प भी होते कपड़ों के ढेर सारे,
रश्मि उठ कर चाय बनाने चली गयी और माँ जी की आवाज फिर से आयी , आवाज की कातरता ने रीना को हिला दिया। कोई इंसान प्यासा हो और पानी न मिले। वह उठ कर गयी तो आँगन में एक छोटा सा कमरा था , उसी में माँजी लेटी हुई थीं। रीना ने गिलास में जग से पानी डाल कर उनको दे दिया।
रुढ़ियों को तोड़ों! स्वास्थ्य को बचाना है, पढ़ो-लिखो आगे बढ़ते जाना है।"
"हमारे घरों की सहायिकाओं को स्काउट गाइड में प्रवेश दिलवाना है।"
"अवश्य! उत्तम प्रशिक्षण। ना इसमें ना कोई भेदभाव है ना जातिवाद होता है। क्या समाज को देना है, क्या जीवन से पाना है, तुम सभी का क्या लक्ष्य है?"
हैं रंगों ने किये सब कैद झंडे,
इन्हें देना रिहाई चाहता हूं। ।
सभी पुर्जे निजामत के सड़े हैं
मैं इनकी अब सफाई चाहता हूं।
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
आभार
जी ! .. नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति की थाल में परोसने के लिए .. और साथ ही बोहनी कराने के लिए .. अब सोच रहे हैं .. स्टार्टअप शुरू कर ही दें .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंइन्सान बनकर जीना कठिन नहीं लेकिन जीना कौन और क्यों चाहेगा!
जवाब देंहटाएंभूमिका ज्वलंत प्रश्न : उत्तर कोई नहीं देगा : किसी के वश की बात ही नहीं•••
शुभकानाओं के संग हार्दिक आभार आपका
श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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