सभी का स्नेहिल अभिवादन।
कर्तव्य, सद् आचरण,अहिंसा
मानवता,दया,क्षमा
सत्य, न्याय जैसे
'धारण करने योग्य'
'धर्म' का शाब्दिक अर्थ
हिंदू, मुसलमान या कोई भी
सम्प्रदाय
कैसे हो सकता है?
विभिन्न सम्प्रदायों के समूह,
विचारधाराओं की विविधता
संकीर्ण मानसिकता वाले
शब्दार्थ से बदलकर
मानव को मनुष्यता का
पाठ भुलाकर
स्व के वृत में घेरनेवाला
'धर्म' कैसे हो सकता है?
कोमल शाखाओं के
पुल बनने की प्रक्रिया में
संक्रमित होकर
संवाद के विषाक्त जल में
गलकर विवाद के
दलदल में सहजता से
बिच्छू बन जाना
धर्म कैसे हो सकता है?
सभ्यता की
विकास यात्रा में
बर्बर होती संवेदना की
अनदेखी कर
उन्मादित शिलापट्टीय
परंपरा वहन करना
धर्म कैसे हो सकता है?
राजनीति ने लाद दी
अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर
अंतर में छाए अँधेरों में
उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें
साझा सहमति से उभरती हैं
विनाश की तीखी तीव्र तरंगें
यही है समय विचार करने योग्य
न कुछ साथ जाना है न कभी गया
जो करोगे यहीं छोड़ जाओगे
फिर किसलिए इतनी उठापटक?
क्यों कर्मकांड की खेती में खुद को झोंका
क्यों मृत्यु के बाद के कर्मकांडों बिना मुक्ति नहीं
की अवधारणा को पोसते रहे
अब तुम्हें कौन बताए
तुम तो चले गए
जय मातारानी की
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सभी रचनाएं पठनीय सार्थक।
जवाब देंहटाएंश्वेता आपकी गहन सारगर्भित लेखनी धर्म क्या है पर ज्वलंत प्रश्न उठाती हुई सार्थक चिंतन ज्ञदे रही है।
सादर सस्नेह
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं