शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फ़ी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवारीय अंक में आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
निशि रुपहली साड़ी में, थिरके सारी रात।
निशिपति भी सम्मुख रहे, होय न कोई बात।।2।।
चाँद केलि करता रहे, रजनी सारी रात।
भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात।।3।।
आज तक अपनी भूल पर कायम रही
उसी कार्य पर अडिग रही
सब का समझाना व्यर्थ गया
जब उनका कहा नहीं माना
आगे से अब भूल नहीं होगी।
कविता स्पष्ट
है बरदोश नहीं है..
कोई तारीफ लिखे कोई नाकामियाँ
कोई व्याकुलता कोई संतोष लिखे
कोई अमन शांति का पैगाम दे
कोई उबलते जज्बातों का आक्रोश लिखे
पीठ पर उभरे उस स्याही के गोले का रंग लड़के की हथेलियों पर नीली लकीर बनकर
उभरा जब प्रार्थना के वक़्त ड्रेस मॉनिटर ने उसे लाइन से बाहर निकाला और मास्टर जी
ने हथेलियाँ आगे करने को कहा। लड़के के हाथ पर उभरी नीली लकीरें लड़की की आँख का
नीला दरिया बनकर छलक पड़ी थीं। उसने कब सोचा था कि उसकी जरा सी शरारत का ये असर
होगा।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
आभार
सादर
सुंदर पठनीय रचनाएं।
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं💐💐
वाह! सुंदर
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