।। ऊषा स्वस्ति।।
भोर ने जब आँख खोली
लालिमा थी संग
एक किरण फूटी रुपहली
कर गयी श्रृंगार !
भोर के माथे है सूरज
रूप किरणों से सजा है
भोर की उस गोद में
माँ के आँचल सा मजा है
भोर का स्पर्श मन में
कर गया झंकार !
ममता किरण
खास देश देतीं पंक्तियों के साथ
चलिए आज की पेशकश में शामिल रचनाओं संग गुजारें कुछ पल और राजनीति का रोग..
सारी जाति उन लोगों की , मोदी की केवल धार !
दयानंद पांडेय
राजनीति में रणनीति के मामले में नीतीश कुमार कई बार नरेंद्र मोदी को भी बहुत पीछे छोड़ देते हैं। कहते थे कभी कबीर कि : जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान। / मोल करो तलवार..
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काँच के ख़्वाब
फेरे जो करवा
चकनाचूर
हुए सब-के-सब,
काँच के ख़्वाब
दूसरा करवट
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काम जु आवै कामरी...' का डाउनलोड लिंक |कहावतों/मुहावरों से सज्जित लघुकथाओं का संकलन
डॉ. उमेश महदोशी जी की फेसबुक वॉल से
कहावतों/मुहावरों से सज्जित लघुकथाओं के संकलन 'काम जु आवै कामरी...' की पीडीएफ..
पृष्ठ संख्या ९७, १०० भी पढ़ें 🙂
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ज़ोर शब का न कोई चलना है,
जल्द सूरज को अब निकलना है।
ये ही ठहरी गुलाब की क़िस्मत,
उसको ख़ारों के बीच पलना है।
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इश्क में उसके बार बार हर बार उजड़ा हूँ l
दरख्तों के पतझड़ शायद सावन नहीं पास ll
टूट बिखरा इसकी फ़िज़ाओं अनगिनत बार l
दिल फिर भी ना सुने इन कदमों की आवाज ll
उन्माद के संग विराम लेती हूॅं।
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'…✍️
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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