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रविवार, 13 जून 2021

3058...दिया जैसे जलाया,रोशनी ब्रम्हांड में फैली


 प्रश्नों पर जब प्रतिबंध लगे
तब दुगुने वेग से
दागने चाहिये सवाल
सवाल,सवाल और सवाल
अनगिनत ,अनवरत
प्रश्न ही प्रश्न पूछे जाने चाहिये
तभी यह अघोषित आपातकाल
प्रश्नकाल में बदल सकता है.

सादर वन्दे ....
आज की रचनाएँ ...

दिए का मोल करने लग गईं अनमोल आँखें
गगन में उड़ चलें लाखों पतंगे खोल पाँखें

ये मिट्टी से बना दीपक है या है धातु निर्मित
अलौकिक ज्योति इसकी कर रही है विश्व जागृत


झील सी, दो नीली आँखें,
झुकी, पर्वतों पर, अलसाई सी पलकें,
कजराए नैनों में, नींदों के पहरे,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा,
बादलों का, कर लूँ!


राम चले वनवास सखी,
नयना सबके नदियाँ बहती।
लोचन पंकज से दिखते,
सुन बात सभी सखियाँ कहती।


जो कुछ भी बिखरा हुआ है मेरे
आसपास, उन्हीं को मैंने
माना है ज़िन्दगी
का इतिहास,
कुछ
धूसर चेहरों में आज भी खेलते हैं


कवि को कल्पना के पहले,
गृहणियों को थकान के बाद,
सृजक को बीच-बीच में और
मुझे कभी नहीं चाहिए..'चाय'
आज शाम में भी चकित होता सवाल गूँजा
कैसे रह लेती हो बिना चाय की चुस्की?
.....
आज बस इतना ही
सादर नमन

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात ....
    मेरी इस रचना को पटल पर सुशोभित करने हेतु आभार.....
    समस्त रचनाकारों को भी शुभकामनाएँ व बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक..
    सारी रचनाएँ सुंदर..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छा संकलन, शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर रचनाओं से सज्जित अंक के लिए शुभकामनाएं प्रिय दिव्या जी,मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
    सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ पांच लिंकों का आनंद मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया दिव्या जी, - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  6. व्वाहहहह..
    प्रश्न पर प्रश्न
    जबरदस्त...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏 सादर

    जवाब देंहटाएं

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