आज जैसा कि शीर्षक दिया गया है कि आज की चर्चा गद्य विधा को समर्पित है ..... गद्य में भी अनेक विधाएँ होती हैं ......कहानी , लघु कथा , व्यंग्य , लेख ...संस्मरण .... ........ आज इन सबका कुछ मिला जुला रूप प्रस्तुत करने का प्रयास है ...... कुछ ले पाई हूँ .....कुछ फिर कभी ..... हमारे पुराने साथी अभी तक ब्लॉग को आबाद किये हुए हैं और एक से बढ़ कर एक पोस्ट लगाते हैं .... जानकारी युक्त होती हैं सभी पोस्ट .... और नए साथी ब्लॉगर भी ब्लॉग की दुनिया को चाक चौबंद किये हुए हैं ....
बहुत बार मैंने अपने पुराने साथियों को प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष रूप से सुझाव दिया कि पहले जैसी ब्लौगिंग नहीं होती तो कोई बात नहीं आप अपनी रचनाएँ तो ब्लॉग पर पोस्ट कर सकते हैं एक डायरी के रूप में ... लेकिन थोड़ी निराशा ही हाथ लगी ..... कहा तो कुछ नहीं लेकिन कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि बस यही कहने वाले कि पगला गयी हो क्या ?????????? आज कल कोई नहीं करता ब्लौगिंग . खैर अभी मनन चल ही रहा था कि ब्लॉग जगत के मार्गदर्शक की एक पोस्ट नज़र में आ गयी .....और सच्ची अब तो उसी पर अमल करने वाले हैं ...... कौन बेकार मुसीबत मोल ले ... समीर लाल जी सरल सी लगने वाली बातों से कहाँ तीर चला रहे हैं ये तो आप पढ़ कर ही जान पायेंगे ...
शाम टहलने निकला था. सामने से आती महिला के कारण तो नहीं मगर उसके साथ पतले से धागेनुमा
किसी डोरी में बँधे बड़े से खुँखार दिखने वाले कुत्ते के कारण वॉक वे छोड़ कर किनारे घास पर डर
कर खड़ा हो गया.
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वैसे सच्ची बात तो ये है कि हर जगह और हर तरह के लोग हर तरह के सुझाव देते नज़र आते हैं
.....बसआपको खुद तय करना है कि किसका सुझाव मानना है या अनसुना कर देना है .. अमित जी
भी लाये हैं एक सुझाव . ....... इसको तो शायद मान लेने में ही भलाई है ....
बड़ी साधारण सी बात है कि,लोग गैस के चूल्हे को लाइटर से जलाते हैं और माचिस का प्रयोग लगभग नहीं ही करते हैं | जो कि पूरी तरह से गलत है |
बस इत्ती सी बात है कहते हुए अमित जी ने किस किस को लपेट लिया है आप भी पढ़िए ....
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अब ज़रा सुझावों से हट कर एक प्रेरक कहानी की तरफ रुख मोड़ते हैं ..... जिनके मन में कुछ कर गुज़रने की ललक होती है वो विषम परिस्थितियों में भी सफलता के सोपान चढ़ते हैं .....सुधा देवरानी जी की कहानी यही कहती है ....
मिठाई का डिब्बा मेरी तरफ बढाते हुए वह मुस्कुरा कर बोली "नमस्ते मैडम जी !मुँह मीठा कीजिए" मैं मिठाई उठाते हुए उसकी तरफ देखकर सोचने लगी ये आवाज तो मंदिरा की है परन्तु चेहरा......नहीं नहीं वह तो अपना मुंह दुपट्टे से छिपा कर रखती है ....नहीं पहचाना मैडम जी... मैं मंदिरा......मंदिरा तुम .
कहानी पढ़ कर लगा न कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ....
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चलिए इस कहानी के बाद अब चर्चा कर लेते हैं आज के समय की...... आज का समय यानि कि कोरोना काल ..... जी अभी ये खतरा टला नहीं है ...... भले ही वैक्सीन लग चुके हैं या लग रहे हैं .....
उम्मीद थी कि जल्दी ही निज़ात मिल जाएगी लेकिन ऐसा है नहीं ..... हमारी एक ब्लॉगर साथी ने एक वर्ष पहले ही इस पर चिंतन मनन कर अपने विचार रखे थे और कहा था कि हमें इसके साथ ही जीना होगा ..... पढ़िए ब्लॉगर रेणु के विचार ....
अचानक ये क्या हुआ कि जिन्दगी का पहिया एकदम थम गया --! गली - कूचे वीरान , सड़कें खाली और हर कोई अपने घर में कैद ! कुछ समय के लिए तो लोगबाग़ -इस तरह जिन्दगी की रफ़्तार पर लगे इस विराम पर स्तब्ध रह गये !पर बाद में लगा - ये खालीपन अपने साथ एक ऐसा सुकून भी जीवन में ले आया है , जहाँ ना मजबूरीवश कहीं भागने की अफ़रातफ़री है , ना किसी दौड़ में आगे आने की जद्दोजहद | यहाँ चिंता और चिंतन बस एक बिंदू पर ठहरे हैं -- अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा ! जो परिवार सालों से एक दूसरे के साथ मिल बैठ नहीं पाए थे-- उन्होंने साथ मिलजुल कर यादों की अनमोल पूंजी आपस में बाँटी .
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काल कोई भी हो लेकिन जिसको लिखने पढने की इच्छा रहती है वो या तो पुस्तक पढ़ लेता है या फिर आज कल इंटरनेट पर बहुत सामग्री मिलती है -----कहानी , कविता , व्यंग्य .... जो मर्ज़ी आये वो पढ़ें ..... ऐसे ही कभी कभी कुछ कहानियाँ मिल जाती हैं .... मीना शर्मा जी की लिखी कहानी ..... दो भागों में ब्लॉग पर प्रकाशित है ......
क्षिप्रा की हरियाली घाटियों के बीच बसा हुआ था एक छोटा सा खूबसूरत गाँव – रुद्रपुर । गाँव के पास से बहती हुई क्षिप्रा अल्हड़ बालिका के समान उछलती कूदती नहीं थी बल्कि शांत – सुघड़ नवयौवना सी मंद-मंथर चाल से बहती जाती थी । इसी सुंदर सरिता तट पर दूर - दूर तक फैले हरे भरे खेत, उसके बाद आम की सघन अमराई और अमराई से लगकर था ग्रामदेवी का सुंदर मंदिर।
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उम्मीद है कहानी पढ़ ली होगी ....... चलिए अब आपको एक ऐसा संस्मरण पढवाते हैं जिसे पढ़ कर मुस्कराहट तो ज़रूर आएगी ....... रायटोक्रेट कुमारेन्द्र जी सुना रहे हैं किस्सा .... ओह सुना नहीं रहे पढ़ा रहे हैं ....
हाल्ट, हुकुम सर देयर. फंडर फ़ो. इस वाक्य से आपमें से संभव है कि बहुत से लोगों का पाला पड़ा हो और बहुत से लोगों का नहीं भी पड़ा होगा. बहुत से लोगों से ऐसे वाक्य का सामना प्रत्यक्ष रूप से किया होगा और बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने ऐसे लोगों की जुबानी ही इस वाक्य से परिचय पाया होगा. हम भी उन्हीं लोगों में से हैं जिन्होंने इस वाक्य का परिचय अपने बाबा जी से प्राप्त किया है.
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अब इस संस्मरण से थोडा बाहर आईये और देखिये अपने अस पास क्या क्या होता रहता है .......कुछ अनुभव और कल्पनाओं को बन कर रची जाती हैं कहानियाँ ...... वाणी जी का यही कहना है ....
चाय बना लाती हूँ - कहती माला रसोई जाने केे लिए मुड़ी तो विद्या भी उसके साथ हो ली यह कहते हुए कि मैं भाभी की मदद करती हूँ.
आपके पापा के बारे में सुना था तबसे ही आपसे मिलने का मन हो रहा था. कैसे क्या हो गया था!
चाय की पतीली गैस पर रखते माला भीगी पलकों से सब बताती रही.
बहुत बुरा हुआ लेकिन पीछे रह जाने वालों को हिम्मत रखनी पड़ती है. चाय विद्या ने ही कप में छानी. बिस्किट, नमकीन करीने से प्लेट में रखते हुए माला फिर से सुबक पड़ी.
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क्या खोज रहे क्या पाया ये तो पता नहीं ....... बस इतना पता कि कोई भी दौर हो ....... हमेशा यही सुनते रहे कि बहुत मंहगाई है ........ कभी मंहगाई कम ही नहीं रही ..... गिरीश पंकज जी इस मंहगाई के कमर तोड़ आसन सिखा रहे हैं ...... एक नज़र इस योग पर भी .....
इस देश में अगर योग के लिए प्रेरणा देने का काम किसी ने किया है तो वो है परमप्रिय महंगाई-सुंदरी.
इसे डायन कहना ठीक नहीं. डायन बर्बाद करती है, ये सुंदरी आबाद करती है. जनता और महंगाई-बाला दोनों अपने-अपने तरीके से योगासन कर रहे हैं. महंगाई के कारण लोग 'शीर्षासन' करने पर मजबूर है.
योग की सारी मुद्राएं करती है महंगाई. 'अनुलोम-विलोम' उसे बड़ा प्रिय है. साँस खींचती है यानी कीमत बढ़ाती है,और कभी-कभार साँस छोड़ती भी है.
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और आज की चर्चा की अंतिम कड़ी ...... इंटरनेट की दुनिया का एक ज्वलंत मुद्दा ..... हांलांकि इस पर बहुत लोगों ने अपने विचार रखे ...... फिर भी यदि और लोग भी इस पर कुछ कहें तो विचारणीय होगा .... कामिनी सिन्हा जी ने उठाये प्रश्न और दिए अपने विचार ....
वैसे तो, सामान्य जीवन में रिश्तों का बहुत महत्व है, अनमोल होते हैं ये रिश्ते। सच्चे और दिल से जुड़े रिश्ते कभी चुभते नहीं...वो हार बनकर भी गले की शोभा ही बढ़ाते हैं। ये गीत तो आज कल के युग की एक खास रिश्ते को बाखुबी परिभाषित कर रहा है वो रिश्ते हैं "आभासी दुनिया के रिश्ते" जो आजकल समाज में यथार्थ रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण जगह बना चुका है। सोशल मीडिया के नाम से प्रचलित अनेकों ठिकाने हैं जहाँ ये रिश्ते बड़ी आसानी से जुड़ रहें हैं और हवाई पींगे भर रहें हैं "फल-फूल भी रहें हैं" ये कहना अटपटा लग रहा है क्योंकि वैसे तो हालात कही भी नजर नहीं आ रहें हैं।
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अचानक ही दिग्विजय साहब का कथन याद आ गया ........ आज सोमवार है और सप्ताह का पहला दिन ज्यादा व्यस्तता लिए हुए .... खैर अब तो लगा दिए लिंक ...... धीरे धीरे पढ़ लीजियेगा .....
आप सभी पाठकों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ...... अपना ख्याल रखें ...... स्वस्थ रहें ....
धन्यवाद ....
संगीता स्वरुप
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंशानदार अक
आज आपने कम्माल की रचनाएँ परोसी है
आभार..
सादर नमन
धन्यवाद , यशोदा ।
हटाएंआदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंआभार..
शनिवार, रविवार छुट्टी के कारण
सोमवार को व्यस्तता स्वाभाविक है..
आज का अंक मनोरंजक है
अभी सिर्फ समीर जी को ही पढ़ कर आनन्दित हुआ
सीखा भी समझा भी..
सादर नमन..
दिग्विजय जी ,
हटाएंआपकी व्यस्तता समझ सकती हूँ ।
आभार ।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसंगीता जी सुबह-सुबह ही आज का अंक देख सबको पढ़ने बैठ गई और कमेन्ट भी कर आई। वाकई बहुत सुन्दर, सटीक अंक है आज का। हालाँकि सबको पढ़ने में काफ़ी वक्त लगा लेकिन विविधता पूर्ण अंक में कहानी व्यंग्य आलेख सभी बेहद मनोररंजक हैं व उत्कृष्ट कोटि के हैं। आपको व सभी रचनाकारों को बहुत बधाई।आप खूब मेहनत से अंक तैयार करती हैं😊
उषा जी ,
हटाएंआश्चर्य है कि आप सभी रचनाएँ इतनी शीघ्रता से पढ़ कर आईं । आप जैसे पाठक ही हमारे हौसले को बढ़ाते हैं ।आपको यह अंक रोचक लगा ,मेरी मेहनत सफल हुई । आभार ।
आदरणीय संगीता दी,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसभी दिगज्जों के बीच खुद को देखकर बेहद ख़ुशी हुई,बहुत बहुत धन्यवाद मेरे लेख को भी चयन करने के लिए।
आपके श्रम को नत मस्तक है मेरा।मैं भी एक चर्चाकार हूँ,इतना खोज-बीन करके रचनाओं को ढूढ़ने में कितनी मेहनत लगी होगी, ये बात मैं समझ सकती हूँ।
आपका ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है। इससे हम सभी का मनोबल बढ़ता है, कुछ और अच्छा करने की उत्सुकता भी बानी रहती है। अभी तो सभी ब्लॉग पर नहीं जा सकी हूँ,मगर जाओगी जरूर। आप जो भांति-भांति के रसीले फल परोसी है उसका रसपान करने में वाकई आनंद आएगा।
सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं सादर नमन
प्रिय कामिनी ,
हटाएंआप सब इतना आभार न प्रकट किया कीजिये , बहुत भारी लगता है । जो पढ़ा हुआ मन मस्तिष्क को झिंझोड़ दे वो याद रहती हैं । ऐसा ही तुम्हारा ये लेख था ।
आप सब लिंक तक जा कर पढ़ते हैं मेरी मेहनत सफल हो जाती है । धन्यवाद ।
हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद गगन जी ।
हटाएंबड़े ही पठनीय व सुन्दर सूत्र।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी ,
हटाएंआभार ।
जी दी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम इस अनूठे संकलन के लिए बहुत सारा आभार।
भूमिका की बात कहें तो मुझे लगता है
ब्लॉग में अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म की तरह त्वरित लाइक कमेंट देखने को नहीं मिलते जिससे प्रशंसा और पसंद की उम्मीद टूटने लगती है और बहुत बार उत्साहहीन होकर क्षुब्ध मन से लेखक दूसरे मंचों का रूख करते हैं, पर फिर भी अपनी रूचि के अनुरूप बहुत सारे अच्छे रचनाकार उपलब्ध हैं। हम भी मानते हैं कि ब्लॉग लेखन एक डायरी की तरह ही प्रयुक्त किया जाना सही है बिना किसी आस के।
आज की रचनाएं-
एक सफलता पर
सुझाव देने का समय हो न हो
हाल्ट,हुकुम,सर देयर पर गंभीरता से
कोरोना काल में चिंतन करते हुए
लाइटर बनाम माचिस जैसा कुछ सोच सकते हैं
फूल बनके खिलते हैं फिर चुभ जाते हैं रिश्ते
कमला की कहानी में डूबकर
गहरे प्रेम के एहसास में
पलकें भींगोते हुए
मँहगाई के क़मर तोड़ आसन से
जिन खोज़ा तिन पाईंया का राग
पढ़ाकू दुनिया से यथार्थ पर ला पटकती है।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी दी।
नये पुराने चिट्ठाकारों के अनुभव का चटपटा स्वाद
से भरा यह साप्ताहिक विशेषांक सचमुच विशेष है।
पाठक अपनी सुविधानुसार आपके द्वारा इकट्ठा की गयी रचनाओं का आनंद सप्ताह भर ले सकते हैं।
सभी को बहुत शुभकामनाएं।
आपको इतना श्रमसाध्य अंक बनाने के लिए बहुत बधाई।
सप्रेम
सादर।
वाह ! प्रिय श्वेता, अनूठा अंदाज।
हटाएंआपका स्नेह है दी:)
हटाएंप्रिय श्वेता ,
हटाएंब्लॉग पर सच ही त्वरित प्रतिक्रिया नहीं मिलती तो उत्साह कम हो जाता है । असल में फ़ास्ट फ़ूड का ज़माना है तो बाकी प्लैट फॉर्म ज्यादा पसंद आते हैं ।
सभी रचनाओं को पढ़ कर जैसे एक सूत्र में पिरो कर अपनी प्रतिक्रिया दी । मन गद गद हो गया ।
सस्नेह
आदरणीया दीदी, आपकी लगन और मेहनत को सलाम है। ब्लॉग्स, ब्लॉगर्स और ब्लॉग लेखन को पुनर्जीवित करने के लिए जिस निष्ठा से आप लगी हैं उसे नमन है।
जवाब देंहटाएंआप मेरे जिस ब्लॉग से 'कमला' को खोज लाई हैं उस पर कोई टिप्पणी करे तो मुझे नोटिफिकेशन नहीं आते। स्कूल से लौटकर थोड़ी देर पाँच लिंकों और चर्चामंच को पढ़ती हूँ। उसी से पता चला कि इस गुमनाम कहानी को पाँच लिंकों में स्थान मिला है। बहुत बहुत आभार,दिल से शुक्रिया दीदी।
आज पठन सामग्री भरपूर है। एक एक कर पढूँगी। प्रथम दो लिंक ही पढ़ी हूँ अभी। इतनी अच्छी गद्य रचनाओं को हम तक पहुँचाने के लिए पुनः पुनः आभार।
प्रिय मीना ,
हटाएंआज कल आपका लेखन कुछ कम दिख रहा है शायद वक़्त नहीं मिल पा रहा होगा । लेकिन प्रयास कर लिखती रहें । कमला भी लोगों से मिल ली होगी आज । आराम से पढ़िए ,सप्ताह भर का सामान है पढ़ने के लिए ।
सस्नेह
सुंदर चर्चा सूत्र …
जवाब देंहटाएंनासवा जी ,
हटाएंआभार ।
बहुत ही श्रमसाध्य एवं लाजवाब प्रस्तुतीकरण ।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा लिंकों के मध्य अपनी पुरानी भूली बिसरी कहानी पाकर दिल बाग-बाग हो गया। इसके लिए आ.संगीता जी का तहेदिल से धन्यवाद। सारी रचनाएं पढ़ने के लिए सुबह से ही वक्त की चोरी किये जा रही थी सफल रही अब जाकर सभी रचनाओं को पढ़कर कमेंट कर पायी हूँ सभी एक से बढ़कर एक रचनाएं पढ़कर मजा आ गया।और फिर से आ.संगीता जी के संकलन और तर्जुबे ने आश्चर्यचकित कर दिया...शत-शत नमन आपको।🙏🙏🙏🙏
सुधा जी ,
हटाएंसुबह से वक़्त की चोरी कर रहीं हैं पढ़ कर हँसी आ गयी । मैंने तो सप्ताह भर का गृह कार्य दिया था 😄😄😄 । आपकी लिखी कहानी बहुत प्रेरक लगी मुझे तो कैसे भूलने बिसरने देती । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
हार्दिक धन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी, इस सुंदर अंक को देखकर मन बाग -बाग हो गया। गद्य रचनाओं में लेखन का हर रंग मौजूद है। पंकज जी की रचना ,हास्य से भरपूर व्यंग्य बढ़िया था तो प्रिय मीना की कहानी के दोनों भाग बहुत मर्मांतक लगे। कथा की कसावट और शिल्प अत्यंत सराहनीय लगे ।माचिस, लाइटर के बहाने अमित जी ने कई दिशा में निशाना साधा। सखी कामिनी का लेख सोशल मीडिया यूजर्स के लिए चिंतन के नए द्वार खोलता हुआ आभासी संसार का सटीक विश्लेषण करता है। वाणी गीत जी की कहानी अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की मनोदशा की गहनता से पड़ताल करते हुए जटिल समस्या का सरल निराकरण सुझाती है। इन सबके अलावा राजा साहब और समीर जी के लेख भी प्रासंगिक लगे। इन सबके साथ मेरे कोरोना पर लिखें लेख का लिंक जोड़कर मुझे अनुगृहित करने के लिए कोटि आभार।अंक तक देर से पहुंचाई जिसके लिए हार्दिक आभार आपका। कितनी मेहनत की होगी ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। पुनः आभार और प्रणाम 🙏💐🌷🌷💐🎈🎈🎈😀
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु , तुम जैसे पाठक मेहनत को सफल बनाते हैं और आगे ज्यादा मेहनत करने का हौसला भी देते हैं ।लिंक पर जा कर रचनाएँ पढ़ी जाएँ , यही चर्चा लगाने का उद्देश्य होता है । और जब कोई
हटाएंपाठक उन रचनाओं को पढ़ कर हर रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देता है तो चर्चाकार का मन बाग बाग हो जाता है ।
ऐसी प्रतिक्रिया से चर्चा को संपूर्णता मिलती है ।
सस्नेह
काफी पठनीय लिनक्स हैं. जाते हैं एक एक करके फुर्सत से.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिखा ।
हटाएंसुधा जी की प्रैरक कथा का जिक्र करना भूल ही गईकिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं।एक जीवट नारी की कथा बडा संदेश देती है।। सुधा जी बधाई की पात्र हैं इस कथा के लिए।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर ही लगी हुई हूँ और ब्लॉग की चर्चा देर से देख पाई. ब्लॉग पर जितनी भी चहल पहल बची है, वह आप लोगों के कारण ही है.
जवाब देंहटाएंपढ़ती हूँ सभी लिंक्स.
आभार
चहल - पहल आप सबके बिना संभव कहाँ ।
हटाएंब्लॉग पर भले ही आज उतना आनंद न आता हो जितना पहले महसूस किया था , लेकिन मुझे आज भी अन्य मंच से अधिक ब्लॉग पर ही अच्छा लगता है ।
धन्यवाद वाणी ।
बहुत बढियां संकलन और आपका प्यारा अंदाज भी
जवाब देंहटाएंअंदाज़ पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
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