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शुक्रवार, 25 जून 2021

3070...सुलगने से मेरे महकता हो अगर


शुक्रवारीय अंक में आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन।

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उजालों की खातिर,अंधेरों से गुज़रना होगा
उदास हैं पन्ने,रंग मुस्कुराहट का भरना होगा।
उफ़नते समुंदर के शोर से कब तक डरोगे
चाहिये सच्चे मोती तो लहरों में उतरना होगा।
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आइए आज  की रचनाएं पढ़ते हैं

आज की पहली रचना के लेखक के शब्दों में-

सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना करने वाले कबीर की भोजपुरी आज स्वयं अश्लीलता और गंदगी का शिकार बन गयी है। भोजपुरी गाने और फिल्मों के संवाद कुरूप और बदरंग होते जा रहे हैं। इन कुसंस्कारों और विसंगतियों से त्राण पाने हेतु यह भाषा छटपटा रही है। 
हर सकारात्मक पहल पर विचार के साथ क्रियान्वयन पर सहयोग भी आवश्यक है-


धानी चूड़ी,
पिअरी पहिनले,
और टहकार सेनुर।
दुलहिन बाड़ी,
 पेड़ा जोहत,
सैंया बसले दूर।
मैना करेली...

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प्रथम रचना सदैव विशेष होती है और बात जब प्रादेशिक भाषा में गढ़ी गयी कृति की हो तो मिठास द्विगुणित हो जाती है। लेखिका को अशेष शुभकामनाएँ आपकी उपलब्धि की उड़ान 
घिंघुड़ी(गौरेया) की तरह साहित्यिक नभ में विशिष्ट हो यही कामना है। 


छज्जे में फँसे हैं तेरे घोंसले पुराने
कैसे हो गये हम सब तेरे लिए विराने   
आजा गौरैया! सता न तू!
बोल गौरैया ! कहाँ गयी तू !!

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काश कि रिश्तों को रफू करने का हुनर भी अभिमान सीख जाता बहुत खूबसूरत लगते फिर तो उधड़े हुए दर्द पर मुस्कुराहटों के फाहे और विश्वास के धागों से गूँथे पैबंद



रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
तार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll 

चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
छलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll 

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देखनी है दिलों में,     ख़ुशी अपनों की,
मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।
सचमुच बोलती हैं गज़लें 


सरहदों पर हैं बुझते,       चिरागों के घर,
जो हक़ीक़त है ख़ुद की बना कर के देख़ ।

देखनी है दिलों में,     ख़ुशी अपनों की,
मिट सकें रंजिशें तो, मिटा कर के देख़ ।

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मौसम के बदलाव पर लेखक की चिंतनीय विचार बारिश की बूँदों की तरह पारदर्शी और बादल की उमस की तरह पर्यावरण के बदलते व्यवहार पर मौसम के राग पर  आधारित है बूँदों की सरगम


ग्लोबल वार्मिंग'' बढ़ रही है ! यह डर की बात तो है ही और ऐसा लग भी रहा है कि मानसून, जो सदियों से भारत पर सहृदय, दयाल और मेहरबान रहता आया है, वह आने वाले वक्त में अपना समय और दिशा बदल सकता है। उससे हमारे विशाल कृषि प्रधान देश को कितनी समस्याओं का सामना करना पडेगा उसका अंदाज लगाना भी मुश्किल है ! ऐसा न हो कि प्रकृति का यह अनुपम, अनमोल तोहफा, राग पावस और बूँदों की सरगम की मधुर ध्वनि किसी कंप्यूटर की डिस्क में ही सिमट कर रह जाए !

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और चलते-चलते
कुछ खास एहसास की भीनी खुशबू मन की दीवारों को छूती रहती हैं, गूँजती रहती है श्वासों की लय में पवित्र प्रार्थनाओं की तरह, सहेजी जाती हैं ताउम्र 

सुलगने से मेरे महकता हो अगर,
रौशन मन का घर-कमरा तुम्हारा।
हरदम किसी मन्दिर की सुलगती,
अगरबत्तियों-सा सुलगता रखना।

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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

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14 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. मेरे शब्दों/अभिव्यक्ति को "पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर अपनी प्रस्तुति में जगह देने के लिए ...
    आज की प्रस्तुति के नायाब संकलन के पूर्व चार पँक्तियों वाली आपकी आज की भूमिका में गहन संदेश ...

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाहहहहहह..
    बहुत शादार अंक..
    बारिश होती रही रात भर
    बिजली आती जाती रही रातभर
    कल कान्हा नदी स्नान को गए थे
    सर्दी लग गई.. आज से क्वारंटाईन में
    काढ़ा पी रहे हैं..शगुन है रथयात्रा का
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. जबरदस्त
    चाहिये सच्चे मोती तो लहरों में उतरना होगा
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात,

    बहुत ही बेहतरीन चर्चा । चुन चुन कर लिंके पेश किए हैं । एक एक कार सभी पर आज वक़्त लगाऊंगा ।
    मेरी रचना इस मंच ओर रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय श्वेताजी,आज के सुंदर,रोचक अंक के लिए बहुत शुभकामनाएं एवम आपके श्रमसाध्य कार्यहेतु नमन।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत शानदार लिंक्स,स्वेता दी।

    जवाब देंहटाएं
  7. लहरों में उतर कर तुम
    लायी हो जो इतने मोती
    चुन चुन कर पढ़ आयी हूँ
    कुछ बातें भी गुन आयी हूँ ।
    भाषाएँ हैं अनमोल हमारी
    अश्लीलता क्यों उन पर हावी है
    हर्ष जी की ग़ज़ल में
    कुछ कसक सी तारी है ।
    बूंदों की सरगम भी
    कानों में कुछ कहती है
    पैबंद लगा हो रिश्तों में तो
    सुंई की चुभन ही उसे सिलती है
    सुंदर बन जाता सब कुछ
    मन मंजूषा भी खिल जाती
    इसी बहाने शायद कभी
    गौरैया भी दिख जाती ।

    सुंदर प्रस्तुति । मुक्तक आशा का संचार करता हुआ ।

    जवाब देंहटाएं
  8. उफ़नते समुंदर के शोर से कब तक डरोगे
    चाहिये सच्चे मोती तो लहरों में उतरना होगा।
    सारगर्भित भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन।
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढिया प्रिय श्वेता | समस्त रंगों की छटा से सराबोर अभिनव अंक | सभी रचनाकारों को विशेष बधाई और शुभकामनाएं| तुम्हें हार्दिक आभार इस श्रम साध्य अंक के लिए | संगीता दीदी की भावपूर्ण काव्यात्मक टिप्पणी ने मंच की शोभा बढ़ा दी | सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  10. श्वेता जी
    सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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