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मंगलवार, 29 जून 2021

3074.....अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।

जय मां हाटेशवरी...... 
सादर अभिवादन..... 
हमारे कुछ ब्लॉगर साथियों ने...... 
हिंदी साहित्य की अमर रचनाओं को..... 
ब्लॉगों पर संकलित किया है...... 

आज की चर्चा में...... 
उन्ही ब्लॉगों से...कुछ रचनाएं..... 

 हम कौन थे क्या हो गए हैं र क्या होंगे अभी आओ बिचारें आज मिल कर ये समस्याएं सभी। 

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए - गोपालदास नीरज
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। 
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। 
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।  

लौटा लो यह अपनी थाती 
मेरी करुणा हा-हा खाती विश्व ! 
न सँभलेगी यह मुझसे 
इसने मन की लाज गँवाई 

लेखिका की छोटी । बहिन श्यामा ने लेखिका को सुझाव दिया कि तुम इतने पशु - पक्षी पाला करती हो , एक गाय क्यों नहीं पाल लेती ? छोटी बहिन का उपयोगितावादी भाषण सुन कर लेखिका प्रभावित हुई और गाय पालने का निश्चय कर लिया । गौरा गाय की वयः । संधि तक पहुँची हुई बछिया थी । गौरा के बंगले पर पहुँचते ही उसका परम्परा रूप में स्वागत किया गया और उसका नामकरण हुआ गौरागिनी या गौरा । उसका । नामकरण उसके स्वरूप के अनुसार ही किया गया क्योंकि गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शनी थी । 

 बूढ़ी काकी सारांश  : वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया लेकिन मुंशी प्रेमचन्द की कहानी बूढ़ी काकी की काकी आज भी प्रासंगिक है। बुजुर्गों की बात चलती है तो प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की मार्मिक कहानी बूढ़ी काकी याद हो आती है। बुजुर्ग        को लोग नसीहत देते हैं। उनकी उपेक्षा करते हैं, अवहेलना करते हैं। मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढी काकी आज भी हमारे सामने आइने की तरह है। 

जिस अमृतमय वाणी के
जड़ में जीवन जग जाता,
रुकता सुनकर वह कैसे ,
रसिकों का दल मदमाता; 
           
आँखों के आगे पाकर            
अपने जीवन का सपना,
हर एक उसे छूने को आया
निज कर फैलाता;           

अंतरव्यथा(अमृता प्रीतम की कहानी)
जब वह मिलने आई थी, बीमार थी। खूबसूरत थी, पर रंग और मन उतरा हुआ था। वह एक ही विश्वास को लेकर आई थी कि मैं उसके हालात पर एक कहानी लिख दूँ... मैंने पूछा-इससे क्या होगा? कहने लगी-जहाँ वह चिट्ठियाँ पडीं हैं जो मैं अपने हाथों से नहीं फाड सकती, उन्हीं चिट्ठियों में वह कहानी रख दूँगी...मुझे लगता है, मैं बहुत दिन जिंदा नहीं रहूँगी, और बाद में जब उन चिट्ठियों से कोई कुछ जान पाएगा, तो मुझे वह नहीं समझेगा जो मैं हूँ। आप कहानी लिखेंगी तो वहीं रख दूँगी। हो सकता है, उसकी मदद से कोई मुझे समझ ले मेरी पीडा को संभाल ले। मुझे और किसी का कुछ फिक्र नहीं है, पर मेरा एक बेटा है, अभी वह छोटा है, वह बडा होगा तो मैं सोचती हूँ कि बस वह मुझे गलत न समझे... उसकी जिंदगी के हालात सचमुच बहुत उलझे हुए थे और मेरी पकड में नहीं आ रहा था कि मैं उन्हें कैसे समेट पाऊँगी। लिखने का वादा तो नहीं किया पर कहा कि कोशिश करूँगी..

आज बस यहीं तक....... अगले सप्ताह हम चर्चा करेंगे..... 
वैश्विक महामारी कोरोना पर..... 
रचनाएं निम्न प्रारूप के माध्यम से भेजें।

धन्यवाद।

5 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहहह..
    दिग्गजों की रचनाओं का आस्वादन..
    प्रतियोगिता हेतु आमंत्रण..
    बेहतरीन..
    आभार..

    जवाब देंहटाएं
  2. हम्म... हमारे पुरखों ने हमें जो साहित्य उपलब्ध करवाया है हमें चाहिए कि उसको और आगे पहुंचाएं ताकि साहित्य का नवीनतम रूप सामने आता रहे. आज उम्दा रचनाओं को पढ़कर सकूं मिला.
    आभार.

    नई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजवाब अंक, पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला। बहुत बधाई कुलदीप ठाकुर जी।

    जवाब देंहटाएं

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