हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
कवि को कल्पना के पहले, गृहणियों को थकान के बाद, सृजक को बीच-बीच में और मुझे कभी नहीं चाहिए..
एक गज़ल की बात हुई थी आप डायरी तक जा पहुँचे
इसी तरह तो लोग उंगलियाँ थाम, पकड़ लेते हैं पहुंचे
दीवान-ए-गालिब तो बल्लीमाराँ से है लाल किले तक
उसे ढूँढने आप यहाँ अमरीका तक कैसे आ पहुंचे
चाय की चुस्की में घुला है रफ़्ता-रफ़्ता प्यार
मुस्कुराते लबों पर सदा बढ़ता रहता ख़ुमार।
एक कुल्हड़ चाय से उतरे सिरदर्द की मार,
हो चाय सा इश्क़ भी हर दिन बन जाए इतवार
रखो अंदाज़ अपना जैसा होता है दिलदार,
छूटती नहीं तलब इसकी भले ही हो जाए उधार
एक अदद गंध, एक टेक गीत की
बतरस भीगी संध्या बातचीत की
इन्हीं के भरोसे क्या क्या नहीं सहा
छू ली है सभी एक–एक इंतहा
एक चाय की चुस्की , एक कहकहा
बदलाव का जमाना है. नये नये प्रयोग होते हैं. खिचड़ी भी फाईव स्टार में जिस नाम और विवरण के साथ बिकती है कि लगता है न जाने कौन सा अदभुत व्यंजन परोसा जाने वाला है और जब प्लेट आती है तो पता चलता है कि खिचड़ी है. चाय की बढ़ती किस्मों और उसको पसंद करने वालों की तादाद देखकर मुझे आने वाले समय से चाय के बाजार से बहुत उम्मीदें है. अभी ही हजारों किस्मों की मंहगी मंहगी चाय बिक रही हैं.
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंचाहिए चाय..
ज़रूरी है..
सदाबहार अंक
सादर नमन..
सदा की तरह..
जवाब देंहटाएंशानदार..
सादर नमन
कमाल है ! कितनों दिनों, बल्कि महीनों के बाद आज सुबह चाय पीते पीते ही ब्लॉग खोली हूँ तो देखा कि पाँच लिंकों पर तो पूरी चाय पार्टी सजी है। ये कमाल आप ही कर सकती हैं विभा दी। अभी तो पहली ही रचना पढ़ी है, मजा आ गया। अब पूरा दिन अच्छा गुजरेगा। और रचनाओं पर दिन में जाऊँगी जब जब एक प्याली गर्म चाय की जरूरत महसूस होगी। मुंबई में पिछले तीन दिन से बारिश हो रही है और मौसम काफी ठंडा है।
जवाब देंहटाएंआज तो चाय की चुस्की के साथ पाँच लिंक के आनंद की बात ही कुछ और है ।
जवाब देंहटाएंविभा जी,
जवाब देंहटाएंवैसे मानना तो पडेगा चाय को, जिसे कभी भी नहीं चाहिए, उनसे भी यह अपनी चर्चा करवा गई
जगत में चाय बफ बलवान है। बहुत सुंदर चाय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआज की चाय पे चर्चा बेमिसाल थी, आपका बहुत आभार और शुभकामनाएँ आदरणीय दीदी।
जवाब देंहटाएंएक कसम जीने की, ढेर उलझनें
जवाब देंहटाएंदोनों गर नहीं रहे, बात क्या बने
देखता रहा सब कुछ सामने ढहामगर कभी किसी का चरण नहीं गहा
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा!!!!!!!!!!!!!!!---गीत- शिल्पी दिवंगत उमाकांत मालवीय के मधुर चाय गीत के साथ ,समीर जी की प्रयोगवादी चाय . प्रत्यक्षा जी की चाय पर जुगलबंदी , अतुल पात्ज्क जी की प्रेमरस भरी चाय के साथ अर्चना जी का, खुद को चाय के बहाने पुराने दिनों में ढूंढने का आग्रह करती मस्त और भावपूर्ण रचनाओं के साथ मधुर - मधुर प्रस्तुति आदरणीय दीदी |इन चुस्कियों के साथ इस मनभावन चर्चा का शुक्रिया | सभी रचनाकारों का आभार और अभिनन्दन | आपको ढेरों आभार और शुभकामनाएं|