हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
कंक्रीट के जंगल में बिना आँगन निम्न मध्यम को मध्यम फ्लोर में बिन छत आश्रय मिला वो तभी तो पाया
जहाँ प्रेम होगा हवाओं में,
विश्वास के पर्वत होंगें,
संतोष के फल लगते होंगें,
सपनों के पेड़ों में,
उम्मीदों के फूल महकते होंगें,
आशाओं के बाग में,
जहाँ लम्हों के समुन्दरों में,
खुशियों के मोती मिलते होंगें,
एक खामोश हलचल बनीं जिन्दगी गहरा ठहरा हुया जल बनी जिन्दगी,
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुया उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी,
दृष्टि आकाश में आश का दिया तुम बुझाती रहीं में जलाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा..
सबका अलग-अलग थान - गन है
सबका अलग-अलग वंदन है
सबका अलग-अलग चंदन है
लेकिन सबके सर के ऊपर नीला एक वितान है
फ़िर क्यों जाने यह सारी धरती लहू-लुहान है?
हुए परेशान इंद्र बोले, हे करुणानिधान!
आप की ही शरण में है स्वर्ग का अब कल्याण।
नींद हो गई है हराम, मिस्ड काॅल ने ले ली जान,
मोबाइल के जाल से अब, आप ही बचाइए।
मोबाइल के जाल से अब, आप ही बचाइए।
विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वर्ग के दर्शन, अप्रतिम अंक
आभार..
सादर नमन
उत्कृष्ट अंक।
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय संकलन दी हमेशा की तरह सबसे अलग।
जवाब देंहटाएंप्रणाम दी
सादर।
विविधतापूर्ण सुंदर संकलन,सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
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