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गुरुवार, 10 जून 2021

3055...इंतज़ार कीजिए, यह वक़्त भी गुज़र जाएगा...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

लो आया नया विहान...कुसुम कोठारी 

झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता,

सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत,

नीड़ को लौटते विहंग ,अस्त होता भानु,

निशा के दामन का अँधेरा कहता।

लो आया नया विहान।।


५७६.रात... ओंकार 

ऐसे में ख़ुद को थामे रखिए,

हाथों में हाथ डाले रहिए,

इंतज़ार कीजिए,

यह वक़्त भी गुज़र जाएगा.


उदासी | कविता | डॉ शरद सिंह

इस शब्द के भीतर

है कांच की तरह टूटे हुए

ख़्वाब की किरचें

जो लहूलुहान कर देती हैं

एहसास के

हाथों को, पैरों को

बल्कि समूचे जिस्म को

लहू रिसता है बूंद-बूंद

आंसू बन कर

और देता है जिस्म के

ज़िन्दा रहने का सबूत

कैसे कहूं कि उदासी क्या है?

 

नूतन तरु के गात हो रहे... अनीता 

शब्दों को आशय तुम देते

वाणी के तुम संवाहक हो,

तुम्हीं प्रेरणा लक्ष्य भी तुम्हीं

शुभता के शाश्वत वाहक हो !


ओ री जिंदगी...सुन तो सही... संदीप कुमार शर्मा 

सोचिए
जिंदगी हार रही है
या
हम
जिंदगी हार रहे हैं।
बचपन के बाद
कभी नहीं हंसते
अब
हर पल
हम
अपने जंजाल में
खुद फंसते हैं
और

फंसते जाते हैं। 


चलते-चलते पढ़िए कुछ अलग-सा- 

राजा आप का .. तड़ीपार ... (भाग-). अन्तिम भाग)... सुबोध सिन्हा 

पर जब उसी दिन शाम तक दुबारा फेसबुक पर झाँका, तो पाया कि उनकी तरफ से हम 'अनफ्रैंड' यानी तड़ीपार किए जा चुके हैं। अफ़सोस इस बात की रही, कि हम वेब पन्ने के उस अपशब्द वाले हिस्से का स्क्रीन शॉट (Screen shot) नहीं ले पाए थे, जिसे उन किन्नर मोहतरमा की कलुषिता को प्रमाण के तौर पर, उस दिन या आज भी दिखलाने पर, उनको आदर देने वाले सभी पटना के बुद्धिजीवियों की आँखें फटी की फटी रह जाती .. शायद ...

 

आज बस यहीं 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार। 


रवीन्द्र सिंह यादव 


11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर
    हाथों में हाथ डाले रहिए,
    इंतज़ार कीजिए,
    यह वक़्त भी गुज़र जाएगा.
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. " यह वक़्त भी गुज़र जाएगा."- निश्चित रूप से वक्त, बुरा हो या अच्छा, गुजर ही जाएगा .. बस ! .. पीछे अपनी रफ़्तार के अनुसार ग़ुबार छोड़ जाएगा .. जिसे हमें झेलना होता है .. शायद ...

      हटाएं
  2. जी अवश्य ये वक्त भी गुजरेगा और ये फिजा भी बदलेगी...बदलेगा बहुत कुछ और बदलना होगा हमें भी क्योंकि इस जैसी कठिन परीक्षा हम और नही दे सकते हैं...बेहतर होगा कि हम सजग हो जाएं। बहुत अच्छे लिंक हैं और बहुत अच्छी रचनाएं। आपको बधाई आदरणीय रवींद्र जी। आभार सभी साथियों को जिनकी रचनाएं आज हमें देखने को मिल रही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेरणात्मक भूमिक और उम्दा लिंक्स का चयन, आभार रवींद्र जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेरणास्पद भूमिका के साथ बहुत सुंदर लिंक्स।

    जवाब देंहटाएं
  5. जी ! नमन संग आभार आपका ...
    आज इस मंच पर मेरी बतकही को जगह देने के लिए शुक्रिया। पर .. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि आज का मंच इतनी सारी प्रभावशाली रचनाओं की उपस्थिति के बावज़ूद भी, आपकी ध्यानाकर्षण करने वाली भूमिका के आभाव में सूना-सूना लग रहा है .. कुछ-कुछ .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर प्रेणनादायक सन्देश देता हुआ लिंक ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर लिंको के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाएं बहुत सुंदर सार्थक।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को पाँच लिंक पर रखने के लिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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