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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

1715....अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण

स्नेहिल अभिवादन
गौरी तृतीया, गणगौर उत्सव,
सौभाग्य सुंदरी पर्व 
चैत्र शुक्ल तृतीया, 27 मार्च 2020 के 
दिन मनाया जा रहा है।
‘गण’ का अर्थ है शिव और ‘गौर’ का अर्थ पार्वती है। 
इस दिन इस दिव्य युगल की 
महिलाओं द्वारा पूजा की जाती है। 
इस दिन को सौभाग्य तीज 
के नाम से भी जाना जाता है।

अब आज की रचनाएँ देखें ....

संसार के सबसे सुंदर पक्षियों में से एक
नक़ल के हुनर में पारांगत लायर बर्ड के नर की सोलह हिस्सों वाली बेहद लंबी और बहुत ही  खूबसूरत पूंछ होती है। जिसके फैलाए जाने पर उसका आकार वाद्ययंत्र वीणा की तरह का हो जाता है। इसके शरीर का रंग तकरीबन भूरा तथा गले का कुछ लालिमा लिए हुए होता है।स्वभाव से बहुत ही शर्मिला होने के कारण यह आसानी से दिखाई नहीं पड़ता ! इसकी आवाज से ही इसकी उपस्थिति का अंदाज लगाना पड़ता है।  मादा पक्षी भी आवाज की नकल करने में बहुत कुशल होती है पर महिलाओं के स्वभाव के विपरीत वह बहुत कम बोलती है...........!


खंडित बीणा स्वर टूटा
राग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया ।
मूक हो गया मन सागर
शब्द लुप्त है सारे।
क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे।।


दीनबंधु जाने को होता है, 
तो मुन्ना के बहाने से वह झोला वहीं छोड़ जाता है, 
ताकि रामू काका के आत्मसम्मान को ठेंस न पहुँचे।
झोले में वह सबकुछ होता है। जिसकी सख़्त ज़रूरत 
रामभरोसे के परिवार को इस समय थी।


अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
ना क्षण में भंगुर, ना क्षण में विहंगम
कदम धीरे-धीरे चले लक्ष्य के पथ
सहम कर ठिठक कर थोडा-सा रुक कर 
सभी के नज़रिए पर खुद को खड़ा कर
भींगे नयन और होठों पे मुस्कान
दिल में लिए दर्द के दासता को




कल रात 10:45 पर सोने जा रहा था। उत्तमार्ध शोभा सो चुकी थी। मैं शयन कक्ष में गया, बत्ती जलाई। पानी पिया और जैसे ही बत्ती बन्द की, कमबख्त   पंखा भी बन्द हो गया। गर्मी से अर्धनिद्रित उत्तमार्ध को बोला -पंखा बन्द हो गया है। मुझे जवाब मिला - मैने पहले ही कहा था, बिजली मिस्त्री को बुलवा कर पंखे वगैरा चैक करवा लो।


मैं...............
.......नहीं हम 
.......नहीं सब 
बंद है घरों में 
अब जाना इस सच को 
जब तक बाहर से घर और घर से बाहर
आने जाने की ना हो सुविधा
घर भी घर नहीं रह जाता 
बन जाता है पिंजरा

आज बस इतना ही
हम-क़दम का नया विषय

कल मिलिए
आदरणीय विभा दीदी से
फिर मिलेंगे
सादर

6 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा लगा है कि मनुष्य का पाखंड देख कर ईश्वर ने स्वयं अपने घर ( मंदिर) के द्वार बंद कर लिये हो।

    मानों वह कह रहा हो - हे मानव! एकांत में रहकर प्रायश्चित करो। कम सुविधाओं में जीना सीखो। पर्यावरण को अपने द्वारा निर्मित नाना प्रकार के वाहनों ,विमानों और कल- कारखाने के माध्यम से प्रदूषण मत करो। हाँ, यह और एक कार्य करना मत भूलना , जो भी है तुम्हारे पास उसमें से कुछ हिस्सा ग़रीबों को भी स्वेच्छा से पहुँचा दो, अन्यथा भूख से व्याकुल हो, यदि वे लॉक डाउन का उलंघन कर अपने घर से बाहर निकल गये , तो तुम्हारा 21 दिनों का यह एकांत व्रत निष्फल होगा और महामारी स्वागत के लिए तुम्हारे द्वार पर बिन बुलाए अतिथि की तरह खड़ी मिलेगी। इससे अच्छा है कि स्वयं किसी पात्र अतिथि ( ज़रूरतमंद ) का खोज करो। तुम्हारे पड़ोस में कई होंगे। जिस मानवता को इस अर्थयुग में तुम भूल बैठे हो, उसे पुनः अपना लो। "
    सुंदर भूमिका एवं श्रेष्ठ रचनाओं से सजे अंक के मध्य मेरे सृजन " मानवीयता " को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    सराहनीय सामयिक प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर संकलन में मुझे भी शामिल करने का हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!सुंदर संकलन । गणगौर पर्व की मंगलकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं

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