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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

889.....यहाँ सबको सब समझ में आता है

स्वतंत्रता मनुष्य के बौद्धिक विकास का द्योतक है।
ईश्वर ने हमें स्वतंत्र बुद्धि विवेक प्रदान किया है परंतु
सामाजिक नियमावली ने हमें मर्यादित रहना सिखलाया है।
किसी के द्वारा थोपे गये नियमों के विरूद्ध,जो किसी प्रगति में बाधक हो, बगावत करना और बात है पर सही गलत को समझे बिना हर बात  पर विरोध जताना क्या स्वतंत्रता है??
शायद आज की पीढ़ी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में भेद करना भूल गयी है। स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासनहीनता तो नहीं न?? अपनी इच्छा से, अपने द्वारा तय किये गये मानकों में, ज्यादा से ज्यादा सुविधाजनक जीवन जीने की चाह, स्वयं को सर्वोपरि मानने का सुख और अपनों  की किसी भी सलाह को नज़र अंदाज़ करना निश्चय 
भटकाव की ओर अग्रसर करता है।

हमें यह समझना चाहिए कि स्वतंत्रता के पीछे कर्तव्यबोध और दायित्वों को पूरा करने का सारतत्व भी निहित है जिसे नकारना ही समस्या  उत्पन्न करना है। 


सादर अभिवादन।
चलिए अब आज की रचनाएँ पढ़ते है।

आदरणीय लोकेश जी की ज़ज़्बातों की दुनिया से
एक शानदार ग़ज़ल

राह  तकता ही  रहा  ख़्वाब सुनहरा कोई
नींद पे  मेरी लगा  कर  गया  पहरा  कोई

ढूंढती है मेरे एहसास की तितली फिर से
तेरी आँखों  में,  मेरी याद का सहरा कोई

आदरणीया मीना जी खूबसूरत भाव और शब्दों में पिरोयी 
गुनगुनी धूप सी रचना

गीली सी धूप में
फूलों की पंखुड़ियां
अलसायी सी
आँखें खोलती हैं ।

ओस का मोती भी
गुलाब की देह पर
थरथराता सा
अस्तित्व तलाश‎ता है ।

वो आखरी खत ... नीतू ठाकुर वो आखरी खत जो तुमने लिखा था तेरे हर खत से कितना जुदा था मजबूरियों का वास्ता देकर मुकर जाना तेरा गुनहगार वो वक़्त था या खुदा था


आदरणीय राजेश सर के सधी लेखनी और सारगर्भित भावों से
निकली शानदार ग़ज़ल

गौहर खातिर आंख ही उसकी काफी है
मत डूबो तुम सागर की गहराई में

खंजर तेरा और मेरे सर का सजदा
टूट गया हूँ पल पल तेरी लड़ाई में

आदरणीया शालिनी रस्तोगी जी की खूबसूरत अभिव्यक्ति


दिल को सरसराता है,
चूनर की धानी धनक से
पायल की रुपहली खनक तक,
हर रंग में नज़र आता है
इश्क़ तेरा
हाँ, सतरंगी है इश्क़ तेरा ....

आदरणीय पुरुषोत्तम जी की हकीकत का आईना दिखाती 
बहुत सुंदर रचना

है अपरिच्छन्न ये, सदा है ये आवरणविहीन,
अनन्त फैलाव व्यापक सीमाविहीन,
पर रहा है ये घटाटोप रास्तों पर,
सघन रेत के आवरणविहीन बसेरों पर,
रेत का ये शहर, भटकते है हम अपवहित रास्तों पर....

आदरणीया रिंकी जी की आध्यात्मिक भाव लिए 
सुंदर रचना


जब कभी भी मैंने आँखें बंद कर
सबके लिए दुआ माँगी
ईश्वर और मैं साथ थे

और अंत में उलूक टाइम्स से सुशील सर की सारगर्भित कृति
जरूरी नहीं है कि लिखने वाला किसी को कुछ समझाने के लिये ही लिखना चाहता है क्योंकि हजूर 

क्या करे
हजूरे आला
अगर कबाड़ पर
लिखे हुऐ उस
बेखुश्बूए
अन्दाज को
कोई खुश्बू
मान कर
सूँघने के लिये
भी चला आता है । 


आज बस इतना ही आप सभी के सुझावों की प्रतीक्षा में
श्वेता

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी श्वेता
    एक विचारणीय प्रश्न...
    एक बेहतरीन प्रस्तुति...
    शुभकामनाएँ.....
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात!
    लाजवाब प्रस्तावना के संग खूबसूरत प्रस्तुतिकरण . "शीत ऋतु" को स्थान‎ दे कर मान देने के लिए‎ आभार श्वेता जी .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संयोजन
    बेहतरीन संकलन
    उम्दा रचनायें
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभातम।
    स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, अनुशासन और कर्तव्यबोध आज की प्रस्तावना को सारगर्भित और गंभीर बनाते हैं।
    आज का अंक विविधता से परिपूर्ण ख़ूबसूरत रचनाओं का मनमोहक गुलदस्ता है।
    इस अंक के लिए चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संयोजन
    उम्दा रचनायें चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय सखी श्वेता
    बिलकुल सही कहा
    अनुशाशन हीनता स्वतंत्रता नहीं हो सकती
    अनशासन बनाये जाते है लोगों की सुरक्षा के लिए
    उनमें त्रुटियाँ हो सकती है पर उन्हें तोड़ने से पहले यह सोचना आवश्यक है
    की कहीं हम सुरक्षा घेरा तो नहीं तोड़ रहें। .... इसी लिए हर निर्णय बहुत सोच समझ कर लेना चाहिए
    क्यों की परिणाम हमें ही भुगतना पड़ता है

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह.. आज की सुबह विचार पूर्ण शब्दों से मुक्कमल हुआ
    बहुत सुंदर संयोजन साथ ही
    उम्दा रचनाओं से चयनित सभी रचनाकारों को बधाई
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. विमर्श का विषय सर्वथा समयोचित है...
    बेहतरीन चयन...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  9. एक डोर से बँधी पतंग स्वतंत्रता से आकाश में उड़ती है किंतु भटकती नहीं। जैसे ही डोर से कटी,वैसे ही उसकी स्वतंत्रता उन्मुक्तता में बदल जाती है। उसके बाद उसके सुरक्षित जमीन पर, अपने स्थान पर लौटने की कोई गारंटी नहीं । अनुशासन ऐसी ही डोर है, हमें भटकने से बचाता है। अपने नैतिक मूल्यों से जोड़े रहता है। पतंग की डोर तो दूसरे के हाथ में होती है पर अनुशासन स्वनिर्मित,स्वअर्जित होना चाहिए। स्वतंत्रता,स्वछंदता और उन्मुक्तता में अंतर है। उस अंतर को समझे बिना आजादी, आजादी की रट लगाने से कोई लाभ नहीं।
    श्वेताजी की पुनः एक बेजोड़ प्रस्तुति है आज का अंक। सादर बधाई सभी रचनाकारों को।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार आदरणीया मीना जी इस बेजोड़ शाब्दिक योगदान के लिए।

      हटाएं
    2. बहुत ही प्रभावशाली विवेचना....मन प्रसन्न हो उठा.!!

      हटाएं
  10. विचारात्मक भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति श्वेता एक से बढ़कर एक रचनाऐं नफासत से चुनी हुई। सभी रचनाकारों को बधाई।
    शुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं
  11. परिवार , समाज या राष्ट्र सभी में स्वतंत्रता के साथ कर्तव्य बोध का होना अति आवश्यक है | विवेक से उपजा कर्तव्य बोध समाज और राष्ट्र को सही दिशा प्रदान करता प्रगति के नए शिखर खोलता है | अनुशासनहीनता को स्वतंत्रता का नाम देना सरासर गलत है | आज की पीढ़ी स्वंतत्रता की मांग में सबसे आगे तो अपने फ़र्ज़ निभाने में सबसे पीछे दिखाई पड़ती है | सामाजिक नियम कायदों को ताक पर रख आक्रामकता अपना वे तन- मन की अपनी अनमोल शक्ति व्यर्थ के कामों में बर्बाद कर रही है | युवा देश का भविष्य हैं -- उनमे विवेक और धैर्य होना ही चाहिए | नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था और मर्यादाओं के पालन में निष्ठा जरूरी है | जैसे नदिया की धारा किनारों के भीतर रहती तो उसका प्रवाह मानवतापयोगी होता है --पर यदि ये धारा बध तोड़ बहती है तो हर और विनाश का तांडव मचा देती है | यही स्वतंत्रता के विषय में कह सकते हैं -- यदि सीमाओं में रह इसका उपयोग किया जाये तो राष्ट्र हित में होती है यदि इसके नियमों का उलंघन होता है तो हानि के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता | अक्सर समाज में समय के अनुसार बदलने जरूरी होते हैं उनके लिए धैर्य पूर्वक चिंतन करना आवश्यक है ना कि बिना सोचे समझे विरोध जताना | आज की भूमिका ने सभी सुधीजनों को एक सार्थक चितन से जोड़ा | हार्दिक आभार प्रिय श्वेता जी | सभी सुंदर सार्थक लिंकों के संयोजन सोने पर सुहागे का काम कर रहे हैं | सभी रचनाकार साथियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं | आपको भी आज के हलचल लिंकों के सफल संयोजन पर बहुत - बहुत बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  12. जी स्वंतत्रता की अभिव्यक्ति में प्रतिबंध विचलित कर देती है, अपने विचारों की प्रस्तुति हमारे स्वय का अधिकार है। परंतु स्वच्छंदता और स्वतंत्रता के मध्य एक महीन रेखा है,जो इनके मायनो को विभाजित करती है। परंतु जब स्री की स्वत्रंता की बात आती है तो सहयोग की अपेक्षा होनी ही चाहिए, इतनी खूबसूरत दुनिया है हमें भी थोड़ा सा आकाश दे दो..मत बांधो हमारे पंखों को संग तुम्हारे उड़ने का साज दे दो....!!
    स्वत्रंता को लेकर आपकी भुमिका बहुत अच्छी लगी,ठोस बातों के साथ आपने जिस तरह से प्रस्तुति दी ... साथ ही साथ उम्दा रचनाओं की प्रस्तुति भी खास रही ..सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आप का हार्दिक आभार ।

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  14. सुन्दर प्रस्तुति लाजवाब बहस/विमर्श के साथ। हलचल का ब्लॉग सेतु पर नम्बर एक पर बने रहना यूँ ही नहीं है। आभार श्वेता जी 'उलूक' के कबाड़ को आज की हलचल के शीर्षक पर जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  15. स्वतन्त्रता एवं स्वछंदता....विचारणीय....
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं

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