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गुरुवार, 26 मई 2016

314....कुछ पल को बस छाया है सुस्ताने दो

सादर अभिवादन..
आज मौसम खराब है

बदली भी
बूंदा-बांदी भी
साथ-साथ तेज हवा भी..
जानलेवा ऊमस भर गई है..


मदन मोहन बाहेती...
भरे सरोवर में ,मै मीठा ,और विशाल सागर में खारा 
कभी छुपा गहरे कूवे में,कभी नदी सा बहता प्यारा 
कभी बादलों में भर उड़ता,कभी बरसता,रिमझिम,रिमझिम 
गरमी में मै भाप जाऊं बन,सर्दी में बन बरफ जाऊं जम 


अंशुमाली रस्तोगी....
मियां आज सुबह-सुबह ही आ धमके। न दुआ, न सलाम। न चेहरे पर मुस्कुराहट, न हाथ में छड़ी। धम्म से सोफे पर पसर गए। हाथ में थामा हुआ अखबार मेरे तरफ फेंकते हुए बोले- 'अमां, देख रहे हो समाज में क्या-क्या हो रहा है? आंख का पानी तो बहुत पहले मर गया था, अब तो दिलों से डर भी जाता रहा।' मैंने मियां द्वारा मेरी तरफ फेंके अखबार को हाथ में लेते हुए खबर को पढ़ा। खबर थी कि एक बीवी अपने सोते हुए शौहर की आंखों में फेवीक्विक लगाके किसी के साथ चंपत हो ली।

आशा सक्सेना....
डाली  कश्ती तभी  अपनी  
इतने बड़े भव सागर में 
हमें तूफान क्या डराएगा 
हस्ती हमारी देख कर
खुद ही शांत हो जाएगा |


दिग्विजय अग्रवाल....
महात्मा जी नें कहा, “बंधु! मेरा कौन शत्रु? शान्ति और सदाचार की शिक्षा देते हुए भला मेरा कौन अहित करना चाहेगा। मै स्वयं अहिंसा का उपदेश देता हूँ और अहिंसा में मानता भी हूँ।” नेता जी नें कहा, “इसमें कहाँ आपको कोई हिंसा करनी है। इसे तो आत्मरक्षा के लिए अपने पास रखना भर है। हथियार पास हो तो शत्रु को भय रहता है, यह तो केवल सावधानी भर है।” नेताजी ने छूटते ही कहा, “महात्मा जी, मैं आपकी अब एक नहीं सुनूंगा। आपको भले आपकी जान प्यारी न हो, हमें तो है। कल ही मैं आपको लायसेंस शुदा हथियार भेंट करता हूँ।”



चाहे जितने जुगनूँ तारे चमकें
आसमान में डंका चाँद का
पर दीपक की परिभाषा अभिन्न
तमकारा चीर सुख देता आनंद का

आज की प्रथम व शीर्षक कड़ी

भूख लगी है दो रोटी तो खाने दो
कुछ पल को बस छाया है सुस्ताने दो

हाथ उठाया जब बापू ने गुस्से में
अम्मा बोली बच्चा है समझाने दो

आज्ञाा देंं यशोदा को
फिर मिलेंगे...


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