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बुधवार, 25 नवंबर 2015

130-सतगुरुनानक परगटया मिटी धुंध जग चानण होआ


जय मां हाटेशवरी...


            आज गुरु नानक देव  जी का प्रकाश उत्सव हैं। हर साल की भांति सिख समाज गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर गुरुद्वारा जाते हैं, शब्द कीर्तन करते हैं, लंगर छकते हैं, नगर
कीर्तन निकालते हैं। चारों तरफ हर्ष और उल्लास का माहौल होता हैं।
एक जिज्ञासु के मन में प्रश्न आया की हम सिख गुरु नानक जी का प्रकाश उत्सव क्यूँ बनाते हैं?
उत्तर के लिये यहां क्लिक करें...
आप सभी को गुरु नानक देव  जी के प्रकाश उत्सव पर पांच लिंकों का आनंद परिवार की ओर से ढेरों शुभकामनाएं...
ये पर्व आप के जीवन में भी प्रकाश फैलाएगा...
इस आशा के साथ पेश है आज की हलचल गुरु  नानक देव  जी     द्वारा रचित चंद दोहों के साथ...
* एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
सोचा भी नहीं कभी कभी ये सब भी यहीं पर होना है
उलूक टाइम्स
परसुशील कुमार जोशी
अपनी बातों को
अपनी सोच के
साथ बस चाँद
तारों की दुनियाँ के
लिये छोड़ देना है
मत कर ‘उलूक’
इतनी हिम्मत
सब कुछ कह देने
की अपनी अपनी
अपनी कह देने वाले
को सुना है अब
यहाँ नहीं कहीं
और जा कर रहना है ।

त्रिवेनियाँ
कागज मेरा मीत है, कलम मेरी सहेली......
परVandana Singh
अगर  जिंदगी  फिर  कभी ऐसे दोराहे पर लाये
जहाँ तुम्हे कोई लाख चाहकर न पुकार पाये
तो समझना तुम अपने ही सन्नाटें में खो चुके हो !
***जब रात चांदनी की आगोश में दम तोड़ चुकी होगी
जब चाँद को गहराते हुए सन्नाटें फाँक चुके होगे
तुम अपनी खिड़की पर मुझे जागता पाओगे !
***
बेतरतीब उलझन
खामोशियाँ...!!!
परMisra Raahul
फ़लक नें रोक रखे बहुत टूटे सितारे,
ऊपर झांकों तो गिराने को भी कहे।
शाम की जुल्फें कान के पार लगाए,
वादे किए है जो निभाने को भी कहे।

अंतर कल व आज में
Akanksha
परAsha Saxena
बिना दबाव चलती नहीं
यदि धन का लालच हो साथ
कुछ भी लिखने से
हिचकती नहीं
अंजाम कोई भी हो
इसकी तनिक चिंता नहीं
यही तो है अंतर
कल व आज के सोचा का
कल था सत्य प्रधान
आज सब कुछ चलता है
कार्यकुशलता के तीन गुण ---
अंतर्मंथन
परडॉ टी एस दराल
सूखे से प्रभावित किसान क़र्ज़ में डूबे आत्महत्या कर रहे हैं। कुपोषण के शिकार बच्चे मिटटी के ढेले खाकर पेट भर रहे हैं। देखा जाये तो समय के साथ साथ हम दोनों
दिशाओं में बढ़ रहे हैं।  एक ओर अमीरों की संख्या बढ़ रही है , वहीँ दूसरी ओर गरीबों की भी संख्या बढ़ रही है।  लेकिन गरीबों की संख्या अमीरों की संख्या से कहीं
ज्यादा बढ़ रही है।
आज की हलचल यहीं तक...
मिलते हैं...
मिलते रहेंगे...
जब तक ये सफर चलेगा...
धन्यवाद...





 

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात आप सभी को
    अच्छी रचनाओं के साथ
    उम्दा प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ​​​​​​सुन्दर हलचल ..........बधाई |
    ​​​​​​​​​​​​आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #​असहिष्णुता पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |

    ​http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/11/intolerance-vs-tolerance.html​​

    जवाब देंहटाएं
  3. गुरुनानकदेव जी के प्रकाश उत्सव पर सभी को शुभकामनाऐं । सुंदर प्रस्तुति और आभार साथ में 'उलूक' के सूत्र 'सोचा भी नहीं कभी कभी ये सब भी यहीं पर होना है' को भी स्थान दिया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    गुरु नानक देव जयंती की हार्दिक शुभकाननायें

    जवाब देंहटाएं

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