एक बार फिर हाजिर हूँ मेरे साथ लुत्फ उठाइए इन रचनाओं का :))
पता नहीं यह दिन कैसे हैं? कुछ भी समझ नहीं आता। मौसम की तरह यह भी अनिश्चित हो गये हैं जैसे। जैसे अभी किसी काम को करने बैठता हूँ के मन उचट जाता
करनी चापरकरन ................शचीन्द्र आर्य
मार डालो साले को, मार डालो। भरी बाजार में देखते ही देखते
चंद लोगो ने पीट पीट कर एक व्यक्ति को मार डाला। सबके
पलाश .............अपर्णा त्रिपाठी
कई बार यूं भी होता है
आये नज़र न हमसफ़र
पर साथ कोई होता है
कई बार यूं भी होता है
अभिनन्दन .............योगेश शर्मा
अपनें इशारों से हवा में
कितने ही तस्वीर उकेरती ......
अपने हाथों से अदृश्य
कल्पना को दृश्य देती .....
अपनी आँखों से ना जाने
मेरा मन पंछी सा .............रीना मौर्या
जब भी कभी नागार्जुन जी का नाम दिमाग में आया सबसे पहले गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई
......कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है आज भी याद है
स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में
ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है
शब्दों की मुस्कुराहट..... संजय भास्कर
इसी के साथ आप सभी से इज़ाज़त चाहता हूँ
-- संजय भास्कर
सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल .......बधाई |
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
वाह संजय भाई
जवाब देंहटाएंआनन्दित हुई
सादर
उम्दा प्रस्तुति लिंक्स की संजय |
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