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शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

118........इक बार मुस्करा दो

सादर अभिवादन...
आज की प्रस्तुति
तसल्ली से....

सुनो ,
रूको, ठहरो दो पल और,
क्या करू? ये आँखें ना जाने
कब तृप्त होंगीं, कब छूटेगी
उस मोह से जो बँधा हैं तुमसे,
यकीन हैं, मर कर भी इस रूह में
प्यास रहेंगी बाकि, तेरे दीदार की; 

ये रही आज की चुनिन्दा रचनाओं की कड़ियाँ...


मन के - मनके में...
बदरंग हो रहे हैं हम-क्या हम जीवन को जीते हैं???
बहुत ही बे-तुका प्रश्न हो सकता है—लेकिन थोडा ठहर कर देखिये उस आइने में जिसे हम जीवन कहते हैं?


डॉ. हीरालाल प्रजापति में
नगीने सा मेरे दिल की 
अँगूठी में जड़ा था वो ॥ 
मेरे माथे की बिंदी था , 
कलाई का कड़ा था वो ॥ 


आकांक्षा में
आये अकेले इस जग में
जाना कब है पता नहीं है
पर अपनाए गए रिश्तों को
बिना विचारे ढोते ही जाना है


गिरीश पंकज में
दीपक उदास है क्यों, इक बार मुस्करा दो 
''ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्करा दो'' 
खुशिया जो बांटते हैं धरती के हैं मसीहा
यह बात थोड़ी समझो, इक बार मुस्करा दो 


दिव्याश में
द्वेष कलुष की कालिख पोंछो
मंगल ध्वनि बजाओ
आँगन गलियों चौबारों संग
दिल में दीप जलाओ


सुबोध सृजन में..
रखना एक दिया
इस दिवाली पर
अंधे मन के आले में
कि हो कुछ उजाला
देख सकें
मसली-रौंदी कलियों की लाशें


चलते-चलते..... 
उल्लूक टाईम्स में नाक कथा
नाक बहुत काम 
की चीज होती है 
सभी जानते है 
पहचानते हैं 
नाक के बिना 
बनाया हुआ पुतला 
भी एक नकटा 
कहलाया करता है 


आज्ञा दें यशोदा को..
फिर मिलेंगे












5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आज दूज है और दीपावली पर्व का समापन |हार्दिक शुभ कामनाएं |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति । NAAC कथा को स्थान दिया 'उलूक' आभारी है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात...
    सुंदर रचनाओं का संकलन...
    आभार...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
    भैया दूज की शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं

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