देव दिवाली भी बीत गई कल
और आँग्ल नव वर्ष भी
दस्तक दे रहा है
कि मैं भी आ रहा हूँ
कुंवारे-कुंवारियों की छटपटाहट भी
धीमी हो गई...वे सब...ढूँढ रहे है...." जूँ "
"जूँ" मिले तो माता-पिता के कान के पास छोड़ दें
ताकि वो रेंगने लगे......:)
चलिए चलते हां लिंक्स की ओर....
बर्ग वार्ता में आतंकियों का मजहब
सवाल पुराना है। पहले भी पूछा जाता था लेकिन आज का विश्व जिस तरह सिकुड़ गया है, पुराना प्रश्न अधिक सामयिक हो गया है। आतंकवाद जिस प्रकार संसार को अपने दानवी अत्याचार के शिकंजे में कसने लगा है, लोग न चाहते हुए भी बार-बार पूछते हैं कि अधिकांश नृशंस आतंकवादी किसी विशेष मजहब या राजनीतिक विचारधारा से ही सम्बद्ध क्यों हैं?
जख्म जो फूलों ने दिए में
जाने कैसी दुनिया कैसे लोग
नकाब पर नकाब पर नकाब डाल
जी लेते हैं जो
और वो छद्मों को
उँगलियों पर गिनते गिनते बुढा जाते हैं
फिर भी न फितरत समझ पाते हैं
सरोकार में....
वह दौड़ता है
तेज आती गाड़ियों के पीछे
वह रिरियता है
बेचने को मूर्तियां, किताबें , मोबाइल चार्जर और
सर्दियों में दस्ताने
अनुशील में
त्याग कैसे दे कोई
जीवन रहते
जीवन को...
आंसू बहते हैं
और समझा लेते हैं
मन को...
जिन्दगी की राहें में
कुछ छोटे छोटे बच्चे
ढूंढ रहे थे कूड़े में
तभी इस उदास सुबह में दिखा मुझे
एक चंचल प्यारी सी मुस्कराहट
चहक कर चिल्लाया, अपने साथ वाले को उसने बुलाया
देख भाई - बम !
नहीं है इसमें पलीता, पर फूटने से बचा रह गया न !
साझा आसमान में वक़ार की ख़ातिर
सर उठाओ बहार की ख़ातिर
ख़्वाब पर एतबार की ख़ातिर
मुल्क के नौजवां परेशां हैं
मुस्तक़िल रोज़गार की ख़ातिर
और ये रही आज के अंक की अंतिम कड़ी...
पॉइट में
क्या कहूँ मेरे ख़्वाब,
तूं कितना हँसी हैं ?
हाँ, सच है की
तूं ज़रूरत ही हैं, मेरी
पर कोई जुर्ररत नहीं है |
अब आज्ञा दें यशोदा को
anupam links sanyojan ..... shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों का चयन...
आभार आप का....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स, सुन्दर हलचल |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी शुभकामनाएँ अच्छे लिंक्स और मुझे भी स्थान देने के लिए, आभार आपका |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंआभार!
जवाब देंहटाएं