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शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

125....दर्पण वही है आपका चेहरा बदल गया

सादर अभिवादन
आज इस अंक में
चुनी कड़ियों में आप  को...

गूगल ब्लाग स्पॉट के अलावा
हिन्दी काव्य संकलन एवं वर्ड प्रेस
में प्रकाशित रचनाओं की कड़ियां
भी मिलेगी....ताकि
तनिक विविधता तो मिले....


देखिए और पढ़िए आज की चुनिन्दा रचनाएँ...


गूगल ब्लॉग से..
साँझ-चिरैया उतरती अपने पंख पसार, 
जल-थल-नभ में एक सा कर अबाध संचार. 

मुट्ठी भर-भर कर गगन दाने रहा बिखेर, 
उड़ जायेगी देखना चुन कर बड़ी सबेर. 


हिन्दी काव्य संकलन से..
जिंदगी के मुस्कराने को,
हर साथ जरुरी होता है

अपनी मंजिल तक पहुचाने को ,
हर हालात जरूरी होता है।


हिन्दी काव्य संकलन से....
इस इंकलाबी दौर में क्या क्या बदल गया
मंज़र बदल गया कहीं जलवा बदल गया।।

दिखलाता है वो दोष तो उसको न दोष दो
दर्पण वही है आपका चेहरा बदल गया।।


गूगल ब्लाग से.....
सच्‍चाई पसंद नहीं आती है
अप्रिय लगती है
लगता है झूठ लिख रहा हूं
सच न जाने क्‍यों
सबको झूठ लगता है।


वर्ड प्रेस से....
दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं
ऐ इश्क़ इस मुक़ाम पे तो आ गया हूँ मैं

डर है कि दम न तोड़ दूँ घुट-घुट के एक दिन
बरसों से अपने जिस्म के अंदर पड़ा हूँ मैं


गूगल ब्लॉग से....
हरेक पैर में एक ही जूता नहीं पहनाया जा सकता है। 
हरेक पैर के लिए अपना ही जूता ठीक रहता है।। 

सभी लकड़ी तीर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं रहती है। 
सब चीजें सब लोगों पर नहीं जँचती है।। 

और ये रही आज की अंतिम कड़ी....

गूगल ब्लॉग से...
हर जिंदगी

भी शायद
किसी लेखक की
लिखी हुई
किताब होती है...
पर हम
नहीं जान पाते
अपनी किताब के
लेखक को

आज्ञा दें यशोदा को..
फिर तो मिलते ही रहेंगे

एक गीत सुना जाए आज..
















4 टिप्‍पणियां:

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