इन आँखों में
आंसुओ की वजह
चाहे जो भी हो ,,
पर ज़िन्दगी में
मुस्कुराने की वजह
सिर्फ आप ही हैं ...
चलिए एक नज़र आज की पसंदीदा रचनाओं की कड़ियों पर...
पहली खुशी
जब माँ के नर्म
हांथो का हुआ था स्पर्श,
रोम-रोम खिल उठा मेरा,
बहुत खुश हुआ था मैं|
मैं कहना चाहता हूं,
इक बात दीवाने से,
कुछ भी हासिल न होगा,
व्यर्थ में आँसू बहाने से।
उसे तुझ से प्यार होता,
तेरा जीवन तबाह न करती,
लाला बहुत परेशान था.
उसने जगह-जगह फ़ोन करने के बाद फ़ैसला किया कि थाने जाना ही ठीक रहेगा. थानेदार को मिला और अपनी आपबीती सुनाई कि -‘साहब, मेरा सेल्समैन रामू मेरा तेइस लाख रूपया लेकर भाग गया. दो नंबर का पैसा नहीं था साहब, तीन दिन की बिक्री का पैसा था.
इस कहानी का क्लाईमेक्स अवश्य पढ़िए..
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
इक यही तो है,
जो हम दोनों को जोड़ता है..
इक दूसरे से...
तुम भी यूँ ही देखते होगे,
जिसकी एक नागा भी नागवार गुजरे ,
वो जब तक ना आये ,बैचैनी बढ़ती
जिसके आने से मिलती दिल को राहत ,
जिसका रास्ता ,रोज निगाहें है तकती
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को ,
इन्तजार होता है जिसके आने का
दावानल सा
कैसे सहज, मधुर हो बोलूँ,
सौम्य आत्म कोई छलता है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में,
दावानल सा जलता है ।।
गहन थी
उदासी...
मन के
किसी कोने में...
वही कोना
जो दिए हुए था समूचा संबल
जीवन को
जीवन होने में...
इज़ाज़त दे यशोदा को
चलते-चलते सुनिए ये गीत
लघुकथा को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आभार जी
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष छोटी बहना
108 जाप के मनके
लिंक्स उम्दा आपके मनके
बहुत बढ़िया सूत्र संयोजन सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल ....मेरी रचना "पहली खुशी" को इस चर्चा में स्थान देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंपहली खुशी है न ऋषभ भाई
हटाएंसादर
उम्दा पोस्ट ... यशोदा जी
जवाब देंहटाएंजब व्रत के लिए सेठजी ने पुत्र को भोजन में परोसा http://raajputanaculture.blogspot.com/2015/11/blog-post_2.html
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!