दूसरे या तीसरे नंबर की वे बेटियां
जो बेटों के इंतजार में जन्म लेती है....
- स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"
पूरी कविता मुझे छूने से दिख जाएगी
सादर अभिवादन
आज की पसंदीदा रचनाओं के सूत्र....
काव्यसंसार से
मैं भटका तो जग था स्थिर,
मैं स्थिर जग भटक रहा है...
उलूक कथन...
‘उलूक’ किसी दिन
दुनियाँ दिखाती है
बहुत कुछ दिखाती है
उसमें कितना कुछ
बहुत कुछ होता है
वीरांश की कलम से..
न शहर बचा, न घर.. और न घर में रहने वाले,
तन्हाई की धुप में सर छुपाने को दीवार ढूँढता हूँ|
जल रहा हूँ अंदर और पैरों के नीचे अंगार ढूढता हूँ…
मेरा मन में....
अकसर पढ़ा और सुना कि
सुखी रहना चाहते हो तो
किसी से अपेक्षा मत रखो
पर क्या ये संभव है???
राजेन्द्र नागदेव..रचनाकार में
एक उम्मीद कभी-कभी इस तरह जगती है
जैसे पतझड़ में फूट पड़ी हो कोई कोंपल
कोख में सहेजे
संसार भर के फूलों का पराग
आज इस अंक का समापन करते-करते
एक गीत की याद आई....
आप भी सुनिए...और आज्ञा दीजिये यशोदा को
सुंदर प्रस्तुति यशोदा जी । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'सच कभी अपने झूठ नहीं कहता है' को पाँच में जगह दी ।
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