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सोमवार, 31 अगस्त 2015

ओस में डूबता अंतरिक्ष विदा ले रहा है.....अंक चौंव्वालीस

सादर अभिवादन स्वीकारें

अकल कितनी भी तेज हो
नसीब के बिना कोई
कुछ भी नहीं जीत सकता
बीरबल काफी अकलमंद होने के बावजूद..
कभी बादशाह नही बन सका ।


चलिये चलते हैं मकसद की ओर...


अनुपमा पाठक की कलम से
एक घर सजाया प्यार से
सब से प्रीत बढ़ाई
कितनों से होती गयी आत्मीयता
फिर भी शुरू से आखिर तक रही मैं परायी


ओंकार केडिया की कलम से
मुझे याद आती हैं
वे बचपन की बातें,
लूडो,सांप-सीढ़ी का खेल,
आम के पेड़ से कैरियाँ तोड़ना,
मुंह अँधेरे उठकर
बगीचे से फूल चुनना.


रचना दीक्षित की कलम से....
बचपन से सुनती आई हूँ
आप सब की ही तरह
पैसा ही जीवन है.
पैसा आना जाना है.
पैसा हाथ का मैल है.


मुकेश कुमार सिन्हा की कलम से...
प्यार कुछ सायकल सा होता है न
जिसके पैडल तो ऊपर नीचे करने होते हैं
जबकि चक्का गोल होता है
पर बढ़ता है सीधे आगे की ओर  !!
खड़खडाता हुआ, कभी कभी डगमगाता हुआ भी !!

और ये रही आज की अंतिम पसंद

मीना चोपड़ा की कलम से....
ओस में डूबता अंतरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से।

चलती हूँ
तीज-त्योहारों का समय है
अभी ढेर सारे काम पड़े हैं

सादर..
यशोदा..








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