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रविवार, 30 अगस्त 2015

ये बंधन तो अटूट है...-43 अंक


जय मां हाटेशवरी...

हर वर्ष  रक्षाबंधन के दिन...
 मुझे बहुत याद आती हैं...
वो बहनें...
जिन्होंने मुझे उस वक्त राखी बांधी...
जब मैं छात्रावास में...
घर से बहुत दूर था...
उस वक्त मुझे बहुत आवश्यक्ता थी...
उनके अपने पन की...
भली ही आज  उनकी राखी मुझ तक नहीं पहुंच रही...
ये भी आवश्यक  नहीं...
राखी हर वर्ष ही बांधी जा सके...
 राखी चाहे एक बार या सौ बार बांधी गयी हो...
ये बंधन तो अटूट है...
उन सब के सुखद भविष्य की कामना के साथ...
पेश हैं आज के 5 लिंक....


मुझको नश्वर चीज़ों की दिल से कोई दरकार नहीं।
संबंधों की कीमत पर कोई सुविधा स्वीकार नहीं।
माँ के सारे गहने-कपड़े तुम भाभी को दे देना।
बाबूजी का जो कुछ है सब ख़ुशी – ख़ुशी तुम ले लेना।

इस का एक ही उपाय है हम भाववाद (आदर्शवाद, दिखावा) का त्याग करें। यथार्थ की जमीन पर आएँ। हम में बोध हो कि परिवार में सब समान हैं भाई-बहिन भी और स्त्री-पुरुष
भी। परिवार में भी और समाज में भी सभी एक दूसरे के लिए हैं, सब मिल कर किसी एक की आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं।  यह हमारी आदत बने, व्यवहार में दिखाई दे, तब
किसी को किसी भी चीज का अभाव नहीं खल सकता, न भौतिक वस्तुओं का न ही प्यार और स्नेह का।
राखी के इस त्यौहार का उद्घोष "हम सब साथ साथ हैं" होना चाहिए।


इसी ऐतिहासिक घटना की कहानी के आधार पर बाद में किसी चित्रकार ने अपनी कल्पना के आधार पर राणा सांगा (Rana Sanga) का पेड़ के नीचे सोते हुए चित्र बनाया जिसमें
पेड़ की छाया दूर होने के बाद धुप से सांगा को बचाने हेतु फन उठाया हुआ एक सांप उन पर छाया कर रहा है|
---------



जल्दी ले जा डाकिए,ये राखी के तार |
गूँथ दिया मैंने अभी,इन धागों में प्यार |
बड़ी सजीली राखियाँ , बेचे नेट हज़ार |
रची रात भर जागकर ,है दिल से उपहार |


जमाना जो बदले बदल जाने देना
बस दोस्तों के दिल में बड़ा प्यार रखना ।
अहम् का वहम कभी छू भी ना पाये
मुझको सदा अपना तलबगार रखना ।

धन्यवाद...

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