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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

आनन्द का उन्नीसवां सफ़ा...

ठान लिया था कि, अब और....
नहीं लिखेंगे......
वो दिखाई दी... 
और तत्काल अल्फ़ाज़ों
ने करवट बदल ली....
सोचा...
पानी मे रहकर
.....
कौन बैर मोल लेगा









चलते हैं ....आप भी आइये न...


शशि पुरवार
आजकल व्यंग विधा अच्छी खासी प्रचलित हो गयी है. 
व्यंगकारों ने अपने व्यंग का ऐसा रायता फैलाया है, 
कि बड़े बड़े व्यंगकार हक्के बक्के रह गए, 
अचानक इतने सारे व्यंगकारों का जन्म कैसे हुआ,


सुशील कुमार जोशी  
कुर्सी में बैठा 
एक बड़ा चोर 
घिरा हुआ 
चारों ओर से 
सारे के सारे चोर 
तू भी चोर 
और मैं भी चोर 


चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
ज़ुरूरत है मुहब्बत का तराना गुनगुनाने की
हर इक सोए हुए जज़्बात को फिर से जगाने की

बहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
मुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की



रजनी मल्होत्रा नैय्यर
दे-दे के वास्ता सीता का हर बार 
अपनी तमन्नाओं को लोग सुलाते रहे

दहलीज़ से निकलकर ना छोड़ी लाज 
दायरे में बंधे आते - जाते रहे लांघते रहे 


और आज की अंतिम पसंदीदा ग़ज़ल


इस्मत ज़ैदी..
उन की आहट 
सिमटा घूँघट

ये कौन आया 
मन के चौखट


दीजिये विदा
-दिग्विजय
















8 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा बहुत बढ़िया :)
    अब हम भी रायता ही फैला रहे हैं
    खाने वाले सारे इसी लिये शायद यहाँ से
    धीरे धीरे गायब होते नजर आ रहे हैं
    बहुत सुंदर प्रस्तुति । आभारी हूँ पाँच सूत्रों में 'उलूक' के रायते को भी जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आनन्द आ गया आज
    सच में
    सुशील भैय्या को
    कुर्सी पर बिठा दिया आपने
    अब देखना....
    सुशील भैय्या
    आपका क्या हाल करते हैंं

    जवाब देंहटाएं
  3. क्‍या बात बहुत ख़ूब दिग्‍विजय जी मेरा लिंक यहां देने के लिए बहुत बहुत आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर और पठनीय सूत्र संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मुझे इतने अच्छे साहित्यकारों के साथ शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

      हटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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