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सोमवार, 17 अगस्त 2015

माल बढ़िया लगे तो मुफ्त उड़ा लो यारो.... अंक तीसवां

सादर अभिवादन....
देखते ही देखते
एक माह व्यतीत हुआ

आप सभी के सहयोग से
इस ब्लाग ने एक माह की
उम्र पा ली है....


नहीं मांगती ऐ खुदा कि,
जिंदगी सौ साल की दे !
दे भले चंद लम्हों की,
लेकिन कमाल की दे ….!!

चलिये चलें लिंक की ओर...


कमरा खाली…
मैं अकेली…… 
आँखें भरी भरी
और दिल भारी


आजु बतकही राजनीति कै, 
जहिकी बातन कै ना छ्वार
पूरे देश म एकुई पट्ठा, 
चारिउ तरफ रहा ललकार!!


दूरी है
और है वो
पास भी...
कितने
छली हैं
ये एहसास भी...


माल बढ़िया लगे तो मुफ्त उड़ा लो यारो 
कौन मेहनत करे, हराम की खा लो यारो !

इसे लिख के कोई दुष्यंत मर चुका यारो  !
उसकी शैली से ज़रा नाम कमा लो यारो ! 


न डोंगरी न तमिल न कन्नड़ 
न ही अरबी उर्दू या फारसी 
न हिंदी संस्कृत या रोमन 
कोई भी तो मेरी भाषा नहीं 


कल रात ही मद्रास से लौटी हूँ
तीसवीं प्रस्तुति का मोह 
नहीं छोड़ पाई....

आज्ञा दीजिए यशोदा को

और सुनिये ये गीत..
















2 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई एक माह पूरे होने की चलता रहे कारवाँ जुड़ते रहें लोग । सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया लिंक्स-सह हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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