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शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

कभी न कभी याद आया तो ज़रूर होगा.....बीसवां अंक

सादर अभिवादन,,,,
आजकल कुछ मौसम बदल सा रहा है
लोग अब कम्प्यूटर व लैपटॉप छोड़..
मोबाईल की सुविधा का उपयोग कर रहे हैे
और लाचारी भी प्रकट कर रहे हैं
कि मोबाईल से लिंक नहीं खुलता...

रुका हुआ है वो रास्ता आज भी है वहां
ठहरे थे साथ तुम्हारे हम, एक पल जहां..

चलिए चलें अपनी मंजिल की ओर...



लाचारी
फिर कहा उसने कि मैंडम जी गैस की छोटी टंकी है हमारे पास, 
वो खतम हो गई है ...अभी किसी से स्टोव मांग कर लेते हैं 
और उसपर खाना बनाना पड़ता है ...बहुत परेशानी हो रही है... 
दो दिन से मेरी तबियत भी ठीक नहीं लग रही सिर दुखता है,
बुखार जैसा भी लगता है .......
कहते-कहते उसकी आँखें नम हो गई .... 
जिसे वो छिपाने की कोशिश कर रही थी ....


आज ठान ले आलस तज कर,
जीवन-कला की कहती ज्वाला-
'कर्मयोग' का पथ चलना है,
सुधि में भी औ' परे सुध-कारा!


मैं भी तेरे जैसा हूँ 
तेरे समझ में 
भी आयेगा और 
कहने के साथ साथ 
धुन में रहना 
दूसरे को भी 
समझा पायेगा । 


मांगने पर भी  मिल न पाया 
ऐसा कुछ छूटा हुआ 
बिछड़ा हुआ 
कभी न कभी 
याद आया तो 
ज़रूर होगा !!


ये ही पीड़ा हृदय में रहेगी सदा,
लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा,
इनकी ससुराल है बेड़ियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।


भाई मयंक जी का प्रतिक्रिया का डिब्बा
नहीं खुला आज...शायद नेट की धीमी गति
की वजह होगी...

बारिश लगातार जारी है...
ऐसे में कुछ तो हो....??

आज्ञा दीजिए यशोदा को














 

7 टिप्‍पणियां:

  1. अभी अभी शुरु हुआ
    बीसवेंं तक पहुँच गया ।
    सुंदर प्रस्तुति और 'उलूक' का आभार भी सूत्र 'अपनी धुन में रहता हूँ मैं भी तेरे जैसा हूँ' को जगह दी आपने यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया लिंक्स संयोजन, सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह, मेरा मन पसंद गीत..सुंदर सूत्र संयोजन..

    जवाब देंहटाएं

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