आनन्द तो आ रहा है न
मुझे तो आ रहा है
पसंदीदा रचनाओं के लिंक्स
सहेज रहीं हूँ...
बस इतना सा असर होगा मेरी बातों का....
कि कभी कभी तुम बिना बात मुस्कुराओगे...
चलिए चलते हैं लिंक्स की ओर....
कभी तो छोड़ दो
धूप को अकेला
मैं इतना सिर्फ
इसलिए कह रही हूँ
सबको तपिश देने वाले
कभी तो जानो
किसी के न होने का अर्थ.
सखी तुम्हारी स्मृति सा वह यूं तो है
प्रेम तुम्हारा उसमें ही अब साकार है
स्वपन का कोई वो नया सा आकाश है
ना जाने किस रीत का वह ही आधार है
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे इस मोहल्ले को तअस्सुब से
यहाँ हमसाए मुझको मुस्कुरा कर देख लेते हैं
तअस्सुब= सम्प्रदायिकता
आतंकवादियों की पैरवी करने वाली
ज़हरीली और बीमार सोच का कोई इलाज नहीं हो सकता ।
किसी भी संविधान या कानून में
सोच की नकारात्मकता को खत्म करने का
प्राविधान अभी तक नहीं आया है।
और ये आज की अंतिम लिंक
थिरक रही अम्बर में
अरुण की ये रश्मियाँ,
चमकी धूप सुनहरी सी
रोशन हुआ घर बाहर
आज्ञा दीजिए
फिर मिलेंगे
यशोदा
एक गीत सुन रही थी मैं सुबह....
सुंदर रचनाऐं सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति के साथ सावन के महीने में "सावन का महीना पवन करे शोर" गाना सुनाने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी सुंदर चर्चा....
जवाब देंहटाएंआभार।
सुंदर लिंक्स का संग्रह.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यबाद यशोदा जी.
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