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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

कैसे घूरता हैं वोह नुक्कड़ पर खड़ा लड़का.....इक्चालिसवें पन्ने में

सादर अभिवादन स्वीकारेंं...

ख्वाब आँखों से गए
और नींद रातों से गयी...
वो जिंदगी से गए और
जिंदगी हाथों से गयी..!!

आगे हैं मेरी आज की पसंदीदा रचनाएँ....


नीलिमा शर्मा... निविया में
कैसे घूरता हैं वोह नुक्कड़ पर खड़ा लड़का
घर से स्कूल जाती नव्योवना को
नीली चुन्नी को देह पर लपेटे
छिपाने की कोशिश में
अपने अंग-प्रत्यंग को
अक्सर मिल जाती हैं उसकी नजर


रेवा दीदी....प्यार में
मन इतनी जल्दी
कैसे भर लेता है
ऊँची उड़ान ,
हवा से भी तेज़
चलता है ,


नीरज भाई.....किताबों की दुनियां में
हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर इक फ़ायदा है पीठ पर खंज़र नहीं लगता

कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेती है
कहीं फल सूख जाते हैं कोई पत्थर नहीं लगता



सुशील भाई...उल्लूक टाईम्स में
झगड़े की
जड़ ही
नहीं रहेगी
एक और
दासता से
देश एक बार
और आजाद
हो जायेगा



दिनेशराय जी द्विवेदी.... अनवरत में...
भण्डारा (लघु कथा)
दोपहर बाद एक अच्छे कपडे पहने नौजवान आया और भिखारियों की पंक्ति में बैठ गया। परोसने वाले चौंके ये भिखारियों के बीच कौन आ गया। व्यापारियों में खुसुर फुसुर होने लगी। तभी एक नौजवान व्यापारी ने उसे पहचान लिया। वह तो नगर के सब से ज्यादा चलने वाले महंगे ग़ज़ब रेस्टोरेंट के मालिक का बेटा था। व्यापारियों ने कुछ तय किया और तीन चार उस के नजदीक गए। बोले -तुम तो ग़ज़ब के मालिक के बेटे हो न? तुम्हें यहाँ भिखारियों के साथ खाने को बैठने की क्या जरूरत?

विदा दें अब..
यशोदा.

आज सुनिए ये गीत....











3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर हलचल । आभार यशोदा जी 'उलूक' का सूत्र 'दे भी दे बचा आधा भी बचा कर कहाँ ले जायेगा' को पाँच लिंकों में स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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